________________ 238] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र पुष्कलावती विजय 121. कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे पुक्खलावई णामं चक्कवट्टिविजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवन्तस्स दक्खिणेणं, सोपाए उत्तरेणं, उत्तरिल्लस्स सीप्रामुहवणस्स पच्चत्थिमेणं, एगसेलस्स वक्खारपन्वयस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे पुक्खलावई णामं विजए पण्णत्ते, उत्तरदाहिणायए एवं जहा कच्छविजयस्स जाव पुक्खलावई अ इत्थ देवे परिवसइ, एएणद्वेणं। [121] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में पुष्कलावती नामक चक्रवति-विजय कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, उत्तरवर्ती शीतामुखवन के पश्चिम में, एकशैल वक्षस्कारपर्वत के पूर्व में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पूष्कलावती नामक विजय बतलाया गया है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा है--इत्यादि सारा वर्णन कच्छविजय की ज्यों है। उसमें पुष्कलावती नामक देव निवास करता है। इस कारण वह पुष्कलावती विजय कहा जाता है। उत्तरी शीतामुख वन 122. कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे सोनाए महाणईए उत्तरिल्ले सोआमुहवणे गाम वणे पण्णत्ते? गोयमा ! णीलवन्तस्स दक्खिणेणं, सोपाए उत्तरेणं, पुरस्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पुक्खलावइचक्कवट्टिविजयस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं सोआमुहवणे णामं वणे पण्णत्ते / उत्तरदाहिणायए, पाईणपडीणवित्थिण्णे, सोलसजोअणसहस्साइं पञ्च य बाणउए जोअणसए दोणि अ एगणवीसइभाए जोअणस्स पायामेणं, सीपाए महाणईए अन्तेणं दो जोअणसहस्साई नव य वावीसे जोअणसए विक्खम्भेणं / तयणंतरं च णं मायाए 2 परिहायमाणे 2 गोलबन्तवासहरपव्वयंतेणं एगं एगूणवीसइभागं जोअणस्स विक्खम्भेणंति / से गं एगाए पउमवरवेइआए एगेण य वणसण्डेणं संपरिक्खित्तं वण्णो सीआमुहवणस्स जाव' देवा आसयन्ति, एवं उत्तरिल्लं पास समत्तं / विजया भणिआ। रायहाणीयो इमानो-- 1. खेमा, 2. खेमपुरा चेव, 3. रिट्ठा, 4. रिट्ठपुरा तहा। 5. खग्गी, 6. मंजूसा, अवि अ 7. प्रोसही, 8. पुंडरीगिणी // 1 // सोलस विज्जाहरसेढीग्रो, तावइयाओ अभिओगसेढीओ सब्वानो इमाओ ईसाणस्स, सव्वेसु विजएसु कच्छवत्तव्वया जाव अट्ठो, रायाणो सरिसणामगा, विजएसु सोलसण्हं बक्खारपब्वयाणं चित्तकूडवत्तव्वया जाव कूडा चत्तारि 2, बारसण्हं गईणं गाहावइवत्तव्वया जाव उभओ पासि दोहि पउमवरवेइमाहिं वणसण्डेहि अ वण्णप्रो। [122] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में शीता महानदी के उत्तर में शीतामुख नामक वन कहाँ बतलाया गया है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org