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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [239 गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पुष्कलावती चक्रवति-विजय के पूर्व में शीतामुख नामक वन बतलाया गया है / वह उत्तर-दक्षिण लम्बा तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। वह 16562 योजन लम्बा है। शीता महानदी के पास 2922 योजन च योजन चौडा है। तत्पश्चात इसकी मात्रा--विस्तार क्रमशः घटता जाता है। नीलवान वर्षधर पर्वत के पास यह केवल योजन चौड़ा रह जाता है। यह वन एक पद्मवरवेदिका तथा एक वन-खण्ड द्वारा संपरिवृत है। इस पर देव-देवियां आश्रय लेते हैं, विश्राम लेते हैं-तक का और वर्णन पूर्वानुरूप है। विजयों के वर्णन के साथ उत्तरदिग्वर्ती पार्श्व का वर्णन समाप्त होता है। विभिन्न विजयों की राजधानियां इस प्रकार हैं 1. क्षेमा, 2. क्षेमपुरा, 3. अरिष्टा, 4. अरिष्टपुरा, 5. खड्गी, 6. मंजूषा, 7. औषधि तथा 8. पुण्डरीकिणी। कच्छ आदि पूर्वोक्त विजयों में सोलह विद्याधर-श्रेणियां तथा उतनी ही सोलह ही आभियोग्यश्रेणियां हैं / ये आभियोग्यश्रेणियां ईशानेन्द्र की हैं। सब विजयों की वक्तव्यता--वर्णन कच्छविजय के वर्णन जैसा है। उन विजयों के जो जो नाम हैं, उन्हीं नामों के चक्रवर्ती राजा वहाँ होते हैं। विजयों में जो सोलह वक्षस्कार पर्वत हैं, उनका वर्णन चित्रकूट के वर्णन के सदृश है। प्रत्येक वक्षस्कार पर्वत के चार चार कूट-शिखर हैं। उनमें जो बारह नदियां हैं, उनका वर्णन ग्राहावती नदी जैसा है। वे दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो वन-खण्डों द्वारा परिवेष्टित हैं, जिनका वर्णन पूर्वानुरूप है। दक्षिणी शीतामुखवन 123. कहि णं भन्ते ! जम्बुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सीमाए महाणईए दाहिणिल्ले सोयामुहवणे णाम वणे पण्णत्ते ? / एवं जह चेव उत्तरिल्लं सोप्रामुहवणं तह चेव दाहिणं पि भाणिअन्वं, णवरं णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सीपाए महाणईए दाहिणणं, पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, वच्छस्स विजयस्स पुरथिमेणं एत्थ णं जम्बुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सीआए महाणईए दाहिणिल्ले सीमामुहवणे णामं वणे पण्णत्ते। उत्तरदाहिणायए तहेव सवं णवरं णिसहवासहरपन्चयंतेणं एगमेगूणवीसहभागं जोअणस्स विक्खम्भेणं, किण्हे किण्णोभासे जाव' महया गन्धद्वाणि मुअंते जाव' प्रासयंति, उभओ पासिं दोहि पउमवरवेइब्राहि वणवण्णो / 6123] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में शीता महानदी के दक्षिण में शीतामुखवन नामक वन कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! जैसा शीता महानदी के उत्तर-दिग्वर्ती शीतामुख बन का वर्णन है, वैसा ही दक्षिण दिग्वर्ती शीतामुखवन का वर्णन समझ लेना चाहिए। इतना अन्तर है—दक्षिण-दिग्वर्ती शीतामुख 1. देखें सूत्र संख्या 6 2. देखें सूत्र संख्या 87 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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