________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [237 पंकावती के पश्चिम में मंगलावर्त नामक विजय बतलाया गया है। इसका सारा वर्णन कच्छ विजय के सदृश है / यहाँ मंगलावर्त नामक देव निवास करता है / इस कारण यह मंगलावर्त कहा जाता है / भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में पंकावती कुण्ड नामक कुण्ड कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! मंगलावर्त विजय के पूर्व में, पुष्कल विजय के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में पंकावती कुण्ड नामक कुण्ड बतलाया गया है / उसका प्रमाण, वर्णन ग्राहावती कूण्ड के समान है। उससे पकावती नामक नदी निकलती है, जो मंगलावतं विजय तथा पूष्कलावत विजय को दो भागों में विभक्त करती हुई आगे बढ़ती है। उसका बाकी वर्णन ग्राहावती की ज्यों है। पुष्कलावर्त विजय 116. कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे पुक्खलावते णाम विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवन्तस्स दाहिणणं, सीग्राए उत्तरेणं, पंकावईए पुरस्थिमेणं, एक्कसेलस्स वखारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं पुक्खलावते णाम विजए पण्णते, जहा कच्छविजए तहा भाणिअन्य जाब पुक्खले प्र इत्थ देवे महिड्डिए पलिओवमट्ठिइए परिवसइ, से एएणोणं० / [119] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में पुष्कलावत नामक विजय कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, पंकावती के पूर्व में एकशैल वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पुष्कलावत नामक विजय बतलाया गया है / इसका वर्णन कच्छ विजय के समान है / यहाँ परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्य युक्त पुष्कल नामक देव निवास करता है, इस कारण यह पुष्कलावर्त विजय कहलाता है / एकशैल वक्षस्कार पर्वत 120. कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे एगसेले णामं वक्खारपव्वए पण्णते? गोयमा ! पुक्खलावत्तचक्कवट्टिविजयस्स पुरस्थिमेणं, पोक्खलावतीचक्कवट्टिविजयस्स पञ्चस्थिमेणं, णीलवन्तस्स दक्खिणेणं, सीआए उत्तरेणं, एत्थ णं एगसेले णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते, चित्तकूडगमेणं अव्वो जाव' देवा प्रासयन्ति / चत्तारि कूडा, तं जहा-१. सिद्धाययणकडे, 2. एगसेलकडे, 3. पुक्खलावत्तकूडे, 4. पुक्खलावईकूडे, कूडाणं तं चेव पञ्चसइ परिमाणं जाव एगसेले अ देवे महिड्डीए। [120] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में एकशैल नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! पुष्कलावर्त-चक्रवर्ति-विजय के पूर्व में, पुष्कलावती-चक्रवर्ति-विजय के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत एकशेल नामक वक्षस्कार पर्वत बतलाया गया है / देव-देवियां वहाँ आश्रय लेते हैं, विश्राम करते हैं तक उसका वर्णन चित्रकूट के सदृश है। उसके चार कूट हैं---१. सिद्धायतनकूट, 2. एकशैलकूट, 3. पुष्कलावर्तकूट तथा 4. पुष्कलावतीकूट / ये पाँच सौ योजन ऊँचे हैं। उस (एकशैल वक्षस्कार पर्वत) पर एकशैल नामक परम ऋद्धिशाली देव निवास करता है। 1. देखें सूत्र संख्या 12 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org