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________________ 236] [जम्मूदीपप्राप्तिसूत्र ___ गौतम ! नोलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, नलिनकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में तथा द्रहावती महानदी के पूर्व में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत आवर्त नामक विजय बतलाया गया है / उसका बाकी सारा वर्णन कच्छविजय की ज्यों है / नलिनकट वक्षस्कार पर्वत 117. कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे गलिणकडे णामं वक्खारपन्यए पण्णत्ते ? गोयमा ! भीलवन्तस्स दाहिणणं, सोपाए उत्तरेणं, मंगलावइस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, आवत्तस्स विजयस्स पुरथिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे गलिणकडे णामं वक्खारपन्वए पण्णत्ते, उत्तरदाहिणण्यए पाईणपडोणविस्थिपणे सेसं जहा चित्तकडस्स जाव आसयन्ति / णलिणकडे णं भन्ते! कति कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि कूडा पण्णत्ता, सं जहा--१. सिद्धाययणकूडे, 2. गलिणकडे, 3. आवत्ताडे, 4. मंगलाबत्तकूडे, एए कूडा पञ्चसइआ, रायहाणीनो उत्तरेणं / [117] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में नलिनकूट नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, मंगलावती विजय के पश्चिम में तथा आवर्त विजय के पूर्व में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत नलिनकूट नामक वक्षस्कार पर्वत बतलाया गया है / वह उत्तर-दक्षिण लम्बा एवं पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। बाकी वर्णन चित्रकट के सदृश हैं। भगवन् ! नलिनकूट के कितने कूट बतलाये गये हैं ? गौतम ! उसके चार कूट बतलाये गये हैं-१. सिद्धायतनकूट, 2. नलिनकूट, 3. आवर्तकूट तथा 4. मंगलावर्तकूट / ये कूट पाँच सौ योजन ऊँचे हैं। राजधानियाँ उत्तर में हैं / मंगलावर्त विजय 118. कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे मंगलावत्ते णाम विजए पण्णते? गोयमा ! णीलवन्तस्स दक्खिणेणं, सीआए उत्तरेणं, गलिणकूडस्स पुरस्थिमेणं, पंकावईए पच्चत्थिमेणं एत्थ णं मंगलावते णामं विजए पण्णत्ते। जहा कच्छस्स विजए तहा एसो भाणियन्वो जाव मंगलावते अ इत्थ देवे परिवसइ, से एएणठेणं० / कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे पंकावई कुडे णामं कुण्डे पण्णते? गोयमा ! मंगलावत्तस्स पुरथिमेणं, पुक्खलविजयस्स पच्चस्थिमेणं, णीलवन्तस्स दाहिणे णितंबे, एत्थ णं पंकावई (कुडे णाम) कुडे पण्णत्ते। तं चेव गाहावइकुण्डप्पमाणं जाव मंगलावत्तपुक्खलावत्तविजए दुहा विभयमाणी 2 अवसेसं तं चेव जं चेव गाहावईए। [118] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में मंगलावर्त नामक विजय कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, नलिनकूट के पूर्व में, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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