________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [235 यहाँ परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्ययुक्त पद्मकूट नामक देव निवास करता है। गौतम ! इस कारण यह पनकूट कहलाता है। कच्छकावती (कच्छावती) विजय 115. कहि गं भन्ते ! महाविदेहे वासे कच्छगावती णाम विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवन्तस्स दाहिणणं, सोनाए महाणईए उत्तरेणं, दहावतीए महाणईए पच्चस्थिमेणं, पम्हकडस्स पुरथिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे कच्छगावती णामं विजए पण्णत्ते, उत्तरदाहिणायए पाईणपडीवित्थिण्णे सेसं जहा कच्छस्स विजयस्स जाव कच्छगावई अ इत्थ देवे। कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे दहावईकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते? गोयमा ! आवत्तस्स विजयस्स पच्चस्थिमेणं, कच्छगावईए विजयस्स पुरथिमेणं, गोलवन्तस्स दाहिणिल्ले णितंबे एत्थ णं महाविदेहे वासे दहावईकुण्डे णाम कुण्डे पण्णत्ते / सेसं जहा गाहावईकुण्डस्स जाव अट्ठो। तस्स णं दहावईकुण्डस्स दाहिणणं तोरणेणं दहावई महाणई पबूढा समाणी कच्छावईनावत्ते विजए दुहा विभयमाणी 2 दाहिणणं सो महाणई समप्पेइ, सेसं जहा गाहावईए। [115] भगवन् महाविदेह क्षेत्र में कच्छकावती नामक विजय कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, द्रहावती महानदी के पश्चिम में, पद्मकट के पूर्व में, महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत कच्छकावती नामक विजय बतलाया गया है / वह उत्तर-दक्षिण लम्बा तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। बाकी सारा वर्णन कच्छविजय के सदृश है / यहाँ कच्छकावती नामक देव निवास करता है / भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में द्रहावती कुण्ड नामक कुण्ड कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! पावर्त विजय के पश्चिम में, कच्छकावती विजय के पूर्व में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत दहावती कुण्ड नामक कुण्ड बतलाया गया है। बाकी का सारा वर्णन ग्राहावती कुण्ड की ज्यों है / / उस दहावती कुण्ड के दक्षिणी तोरण-द्वार से द्रहावती महानदी निकलती है। वह कच्छावती तथा आवर्त विजय को दो भागों में बांटती हुई आगे बढ़ती है / दक्षिण में शीतीदा महानदी में मिल जाती है / बाकी का सारा वर्णन ग्राहावती का ज्यों है। आवर्त विजय 116. कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे आवत्ते णामं विजए पण्णत्ते? गोयमा ! णीलवन्तस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणणं, सीमाए महाणईए उत्तरेणं, गलिणकूडस्स बक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, दहावतीए महाणईए पुरत्थिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे पावत्ते णाम विजए पण्णत्ते / सेसं जहा कच्छस्स विजयस्स इति / [116] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में आवर्त नामक विजय कहाँ बतलाया गया है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org