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________________ 234] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र ___ गौतम ! सुकच्छ विजय के पूर्व में, महाकच्छ विजय के पश्चिम में नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में ग्राहावती कुण्ड नामक कुण्ड बतलाया गया है। इसका सारा वर्णन रोहितांशा कुण्ड की ज्यों है / उस ग्राहावती कुण्ड के दक्षिणी तोरण-द्वार से ग्राहावती नामक महानदी निकलती है। वह सुकच्छ महाकच्छ विजय को दो भागों में विभक्त करती हुई आगे बढ़ती है / उसमें 28000 नदियां मिलती हैं। वह उनसे आपूर्ण होकर दक्षिण में शीता महानदी से मिल जाती है / ग्राहावती महानदी उद्गम-स्थान पर, संगम-स्थान पर-सर्वत्र एक समान है / वह 125 योजन चौड़ी है, अढ़ाई योजन जमीन में गहरी है / वह दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं द्वारा, दो वन-खण्डों द्वारा घिरी है। बाकी का सारा वर्णन पूर्वानुरूप है। महाकच्छ विजय 113. कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे महाकच्छे णाम विजये पण्णत्ते ? गोयमा ! गीलवन्तस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणणं, सीनाए महाणईए उत्तरेणं, पम्हकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, गाहावईए महाणईए पुरथिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं विजए पण्णत्ते, सेसं जहा कच्छविजयस्स जाव महाकच्छे इत्थ देवे महिड्डीए अट्ठो अ भाणिग्रव्यो / [113] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में महाकच्छ नामक विजय कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, ग्राहावती महानदी के पूर्व में महाविदेह क्षेत्र में महाकच्छ नामक विजय बतलाया गया है। बाकी का सारा वर्णन कच्छ विजय की ज्यों है / यहाँ महाकच्छ नामक परम ऋद्धिशाली देव रहता है। पनकट वक्षस्कार पर्वत 114. कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे पम्हकडे णामं वक्खार पवए पण्णते ? गोयमा ! णीलवन्तस्स दक्खिणेणं, सोयाए महाणईए उत्तरेणं, महाकच्छस्स पुरथिमेणं, कच्छावईए पच्चस्थिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे पम्हकूडे णामं वक्खारपब्वए पण्णत्ते, उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविस्थिण्णे सेसं जहा चित्तकूडस्स जाव प्रासयन्ति / पम्हकूडे चत्तारि कूडा पण्णता तं जहा–१. सिद्धाययणकूडे, 2. पम्हकूडे, 3. महाकच्छकूडे, 4. कच्छवइकूडे एवं जाव अट्ठो। पम्हकूडे इत्थ देवे महद्धिए पलिप्रोवमठिईए परिवसइ, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ। [114] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पद्मकूट नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वक्षस्कार पर्वत के दक्षिण में शीता महानदी के उत्तर में, महाकच्छ विजय के पूर्व में, कच्छावती विजय के पश्चिम में महाविदेह क्षेत्र में पद्मकुट नामक वक्षस्कार पर्वत बतलाया गया है / वह उत्तर-दक्षिण लम्बा है, पूर्व-पश्चिम चौड़ा है / बाकी का सारा वर्णन चित्रकूट की ज्यों है। पद्मकूट के चार कूट--शिखर बतलाये गये हैं 1. सिद्धायतन कूट, 2. पद्म कूट, 3. महाकच्छ कूट, 4. कच्छावती कूट / इनका वर्णन पूर्वानुरूप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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