________________ 226] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र गौतम ! यावत् कूट-पर्वत-शिखर नौ बतलाये गये हैं-१. सिद्धायतनकूट, 2. माल्यवान्कूट, 3. उत्तरकुरुकूट, 4. कच्छकूट, 5. सागरकूट, 6. रजतकूट, 7. शीताकूट, 8. पूर्णभद्रकूट एवं 6. हरिस्सहकूट / भगवन् ! माल्यवान वक्षस्कार पर्वत पर सिद्धायतन कूट नामक कूट कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! मन्दरपर्वत के उत्तर-पूर्व में ईशान कोण में, माल्यवान् कूट के दक्षिण-पश्चिम मेंनैऋत्य कोण में सिद्धायतन नामक कूट बतलाया गया है। वह पाँच सौ योजन ऊँचा है। राजधानीपर्यन्त बाकी का वर्णन पूर्वानुरूप है। माल्यवान्कूट, उत्तरकुरुकूट तथा कच्छकूट की दिशाएँप्रमाण आदि सिद्धायतन कूट के सदृश हैं। अर्थात् वे चारों कूट प्रमाण, विस्तार आदि में एक समान हैं / कूटों के सदृश नाम युक्त देव उन पर निवास करते हैं। भगवन् ! माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत पर सागर कूट नामक कूट कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! कच्छकूट के उत्तर-पूर्व में -ईशान कोण में और रजतकूट के दक्षिण में सागर कूट नामक कूट बतलाया गया है। वह पाँच सौ योजन ऊँचा है। बाकी का वर्णन पूर्वानुरूप है। वहाँ सुभोगा नामक देवी निवास करती है। उत्तर-पूर्व में-ईशान कोण में उसकी राजधानी है / रजत कट पर भोगमालिनी नामक देवी निवास करती है। उत्तर-पूर्व में उसकी राजधानी है / बाकी के कूट-पिछले कूट से अगला कूट उत्तर में, अगले कूट से पिछला कूट दक्षिण में इस क्रम से अवस्थित हैं, एक समान प्रमाणयुक्त हैं। हरिस्सह कूट 106. कहि णं भन्ते ! मालवन्ते हरिस्सहकूडे णामं कूडे पण्णते ? गोयमा ! पुण्णभद्दस्स उत्तरेणं, णीलवन्तस्स दक्खिणेणं, एत्य णं हरिस्सहकूडे णामं कूडे पण्णत्ते। एगं जोअणसहस्सं उद्धं उच्चत्तणं, जमगपमाणेणं अव्वं / रायहाणी उत्तरेणं असंखेज्जे दीवे अण्णमि जम्बुद्दीवे दोवे, उत्तरेणं बारस जोअणसहस्साई प्रोगाहित्ता एत्थ णं हरिस्सहस्स देवस्स हरिस्सहाणामं रायहाणी पण्णत्ता। चउरासीइं जोअणसहस्साई आयामविक्खम्भेणं, बे जोअणसयसहस्साइं पढेि च सहस्साइं छच्च छत्तीसे जोनणसए परिक्खेवेणं, सेसं जहा चमरचञ्चाए रायहाणीए तहा पमाणं भाणिअव्वं, महिड्डीए महज्जुईए। से केणठेणं भन्ते ! एवं बुच्चइ मालवन्ते वक्खारपव्वए 2 ? / गोयमा! मालवन्ते णं वक्खारपब्वए तत्थ तत्थ देसे तहिं 2 बहवे सरिागुम्मा, णोमालिप्रागुम्मा जाव मगदन्तिप्रागुम्मा। ते णं गुम्मा दसद्धवण्णं कुसुमं कुसुमेति, जे णं तं मालवन्तस्स यक्खारपन्वयस्स बहुसमरमणिज्ज भूमिभागं वायविधुअग्गसालामुक्कपुप्फपुजोवयारकलिअं करेन्ति / मालवंते अ इत्थ देवे महिड्डीए जाव' पलिप्रोवमट्टिइए परिवसइ, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ, अदुत्तरं च णं (धुवे, णियए, सासए, अक्खए, अम्वए, अवट्ठिए) णिच्चे। 1. देखें सूत्र संख्या 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org