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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [223 ऊँचा तथा प्राधा योजन जमीन में गहरा है उसका स्कन्ध-कन्द से ऊपर शाखा का उद्गम-स्थान दो योजन ऊँचा अोर प्राधा योजग मोटा है। उसकी शाखा-दिक-प्रसृता शाखा अथवा मध्य भाग प्रभवा ऊर्ध्वगता शाखा 6 योजन ऊँची है / बीच में उसका आयाम-विस्तार आठ योजन है। यों सर्वांगतः उसका प्रायाम-विस्तार कुछ अधिक आठ योजन है। उस जम्बू वृक्ष का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है उसके मूल वज्ररत्नमय हैं, विडिमा-मध्य से ऊर्ध्व विनिर्गत-ऊपर को निकली हुई शाखा रजत-घटित है। उसका स्कन्ध विशाल. रुचिर वज्ररत्नमय है। उसकी बडी डालें उत्तमजातीय स्वर्णमय हैं / उसके अरुण, मृदुल, सुकुमार प्रवाल-अंकुरित होते पत्ते, पल्लव-बढ़े हुए पत्ते तथा अंकुर स्वर्णमय हैं। उसकी डालें विविध मणि रत्नमय हैं, सुरभित फूलों तथा फलों के भार से अभिनत हैं / वह वृक्ष छायायुक्त, प्रभायुक्त, शोभायुक्त एवं प्रानन्दप्रद तथा दर्शनीय है। जम्बू सुदर्शना की चारों दिशाओं में चार शाखाएँ बतलाई गई हैं। उन शाखाओं के बीचोंबीच एक सिद्धायतन है। वह एक कोश लम्बा, प्राधा कोश चौड़ा तथा कुछ कम एक कोश ऊँचा है। वह सैकड़ों खंभों पर टिका है / उसके द्वार पांच सौ धनुष ऊँचे हैं / वनमालाओं तक का आगे का वर्णन पूर्वानुरूप है। उपर्युक्त मणिपीठिका पाँच सौ धनुष लम्बी-चौड़ी है, अढाई सौ धनुष मोटी है / उस मणिपीठिका पर देवच्छन्दक-देवासन है। वह देवच्छन्दक पांच सौ धनुष लम्बा-चौड़ा है, कुछ अधिक पांच सौ धनुष ऊँचा है / आगे जिन-प्रतिमाओं तक का वर्णन पूर्ववत् है / उपर्युक्त शाखाओं में जो पूर्वी शाखा है, वहाँ एक भवन बतलाया गया है। वह एक कोश लम्बा है / यहाँ विशेषतः शयनीय और जोड लेना चाहिए / बाकी की दिशाओं में जो शाखाएँ हैं, वहाँ प्रासादावतंसक-उत्तम प्रासाद हैं। सम्बद्ध सामग्री सहित सिंहासन-पर्यन्त उनका वर्णन पूर्वानुसार है। वह जम्बू (सुदर्शन) बारह पद्मवरवेदिकानों द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है। वेदिकाओं का वर्णन पूर्वानुरूप है / पुन: वह अन्य 108 जम्बू वृक्षों से घिरा हुआ है, जो उससे आधे ऊँचे हैं। उनका वर्णन पूर्ववत् है / पुनश्च वे जम्बू वृक्ष छह पद्मवरवेदिकाओं से घिरे हुए हैं। जम्बू (सुदर्शन) के उत्तर-पूर्व में -ईशान कोण में, उत्तर में तथा उत्तर-पश्चिम में वायव्य कोण में अनादत नामक देव, जो अपने को वैभव, ऐश्वर्य तथा ऋद्धि में अनुपम, अप्रतिम मानता हुआ जम्बू द्वीप के अन्य देवों को प्रादर नहीं देता, के चार हजार सामानिक देवों के 4000 जम्बू वृक्ष बतलाये----गये हैं। पूर्व में चार अग्रमहिषियों--प्रधान देवियों के चार जम्बू कहे गये हैं। दक्षिण-पूर्व में आग्नेय कोण में, दक्षिण में तथा दक्षिण-पश्चिम में-नैऋत्य कोण में क्रमश : आठ हजार, दश हजार और बाहर हजार जम्बू हैं / ये पार्षद देवों के जम्बू हैं। पश्चिम में सात अनीकाधिपों-सात सेनापति-देवों के सात जम्बू हैं। चारों दिशाओं में सोलह हजार प्रात्मरक्षक देवों के सोलह हजार जम्बू हैं। जम्बू (सुदर्शन) तीन सौ वन-खण्डों द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है / उसके पूर्व में पचास योजन पर अवस्थित प्रथम वनखण्ड में जाने पर एक भवन आता है, जो एक कोश लम्बा है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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