________________ 222) [जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्र 1. सुदंसणा, 2. अमोहा य, 3. सुप्पबुद्धा, 4. जसोहरा। 5. विदेहजम्बू, 6. सोमणसा, 7. णिश्रया, 8. णिच्चमंडिआ॥१॥ सुभद्दा य, 10 विसाला य, 11 सुजाया, 12 सुमणा वि प्रा।। सुदंसणाए जम्बूए, णामधेज्जा दुवालस // 2 // जम्बूए णं अट्ठमंगलगा। से केणठेणं भन्ते ! एवं वुच्चइ-जम्बू सुदंसणा 2 ? गोयमा ! जम्बूए णं सुदंसणाए अणाढिए णाम जम्बुद्दीवाहिवई परिवसइ महिड्डीए, से णं तत्थ चउण्हं सामाणिप्रसाहस्सीणं, (चउण्हं अग्गमहिसोणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणिआहिवईणं सोलस-) प्रायरक्खदेवसाहस्सोणं, जम्बुद्दीवस्स पं दीवस्स, जम्बूए सुदंसणाए, अणाढिाए रायहाणीए, अण्णेसि च बहूणं देवाण य देवीण य जाव' विहरइ, से तेण?णं गोयमा ! एवं बुच्चइ, अदुत्तरं णं च णं गोयमा ! जम्बूसुदंसणा जाव भुवि च 3 धुवा, णिअआ, सासया, अक्खया (अव्वया) अवद्विमा। कहि णं भन्ते ! अणाढिअस्स देवस्स प्रणाढिया णाम रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! जम्बुद्दीवे मन्दरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं जं चेव पुन्ववणि जमिगापमाणं तं चेव प्रव्वं, जाव उववाश्रो अभिसेसो प्रनिरवसेसोत्ति। से केणठेणं भन्ते ! एवं वुच्चइ उत्तरकुरा ? गोयमा ! उत्तरकुराए उत्तरकुरू णामं देवे परिवसइ महिड्डीए जाव' पलिप्रोवमट्टिइए, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ उत्तरकुरा 2, अदुत्तरं च णंति (धुवे, णियए) सासए। [107] भगवन् ! उत्तरकुरु में जम्बूपीठ नामक पीठ कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, मन्दर पर्वत के उत्तर में माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में एवं शीतामहानदी के पूर्वी तट पर उत्तरकुरु में जम्बूपीठ नामक पीठ बतलाया गया है। वह 500 योजन लम्बा-चौड़ा है। उसकी परिधि कुछ अधिक 1581 योजन है / वह पीठ बीच में बारह योजन मोटा है / फिर क्रमश: मोटाई में कम होता हुआ वह अपने आखिरी छोरों पर दो दो कोश मोटा रह जाता है। वह सम्पूर्णत: जम्बूनदजातीय स्वर्णमय है, उज्ज्वल है। वह एक पद्मवरवेदिका से तथा एक वन-खण्ड से सब ओर से संपरिवृत-घिरा है। पद्मवरवेदिका तथा वन-खण्ड का वर्णन पूर्वानुरूप है / जम्बूपीठ की चारों दिशाओं में तीन तीन सोपानपंक्तियां हैं / तोरण-पर्यन्त उनका वर्णन पूर्ववत् है। जम्बूपीठ के बीचोंबीच एक मणि-पीठिका है / वह आठ योजन लम्बी-चौड़ी है, चार योजन मोटी है / उस मणि-पीठिका के ऊपर जम्बू सुदर्शना नामक वृक्ष बतलाया गया है। वह पाठ योजन 1. देखें सूत्र संख्या 12 2. देखें सूत्र संख्या 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org