________________ 212] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र भगवन् ! उत्तर कुरुक्षेत्र का प्राकार, भाव, प्रत्यवतार कैसा है ? गौतम ! वहाँ बहुत समतल, सुन्दर भूमिभाग है। पूर्व प्रतिपादित सषमसुषमा-सम्बन्धी वक्तव्यता-वर्णन के अनुरूप है-वैसी ही स्थिति उसकी है। वहाँ के मनुष्य पद्मगन्ध-कमल-सदृश सुगन्धयुक्त, मृगगन्ध-कस्तूरी-मृग सदृश सुगन्धयुक्त, अमम-ममता रहित, सह-कार्यक्षम, तेतली--विशिष्ट पुण्यशाली तथा शनैश्चारी--मन्दगतियुक्तधीरे-धीरे चलने वाले होते हैं। यमक पर्वत 105. कहि णं भन्ते ! उत्तरकुराए जमगाणामं दुवे पव्वया पण्णत्ता ? __ गोयमा ! गीलवंतस्स वासहरपब्वयस्स दक्खिणिल्लानो चरिमन्ताओ अट्ठजोअणसए चोत्तीसे चत्तारि अ सत्तभाए जोषणस्स अबाहाए सीआए महाणईए उभओ कूले एत्थ णं जमगाणामं दुवे पव्वया पण्णता / जोअणसहस्सं उड्ढे उच्चत्तेणं, अड्डाइज्जाई जोअणसयाई उन्हेणं, मूले एग जोअणसहस्सं आयामविक्खम्भेणं, माझे अट्ठमाणि जोअणसयाई आयामविक्खम्भेणं, उरि पंच जोमणसयाई आयामविक्लम्भेणं / मूले तिणि जोप्रणसहस्साई एगं च बावळं जोअणसयं किंचिविसेसाहिलं परिक्खेवेणं, मज्झे दो जोअणसहस्साई तिणि वावत्तरे जोअणसए किचिविसे साहिए परिक्खेवेणं, उवरि एग जोअणसहस्सं पञ्च य एकासीए जोअणसए किचिविसेसाहिए परिवखेवणं / मूले विच्छिण्णा, मज्झे संखित्ता, उप्पि तणुआ, जमगसंठाणसंठिया सव्वकणगामया, अच्छा, सोहा। पत्तेअं 2 पउमवरवेइआपरिक्खिता पत्तेनं 2 वणसंडपरिक्खित्ता / तानो णं पउमवरवेइआओ दो गाउनाई उद्धउच्चत्तेणं, पञ्च धणसयाई विक्खम्भेणं, वेडा-वणसण्डवण्णओ भाणिअन्वो। तेसि णं जमगपव्वयाणं उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं दुवे पासायवडेंसगा पण्णत्ता / ते णं पासायवडेंसगा बाढि जोमणाई अद्धजोअणं च उद्ध उच्चत्तेणं, इक्कतीसं जोअणाई कोसं च आयाम-विक्खंभेणं पासायवण्णनो भाणिश्रव्वो, सीहासणा सपरिवारा (एवं पासाययंतीनो)। एत्थ णं जमगाणं देवाणं सोलसण्हं पायरक्खदेवसाहस्सीणं सोलस-भद्दासणसाहस्सीनो पण्णत्तायो। से केणठेणं भन्ते ! एवं वुच्चइ जमग-पव्वया 2 ? / गोयमा ! जमग-पव्वएसु णं तत्थ 2 देसे तहि तहि बहवे खुड्डाखुड्डियासु वावीसु जाव' विलपंतियासु बहवे उप्पलाइं जाव जमगवण्णाभाई, जमगा य इत्थ दुवे देवा महिडिया, ते णं तत्थ चउण्हं सामाणिन-साहस्सोणं (चउण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणिआणं, सत्तण्हं अणिआहिवईणं, सोलसण्हं आयरक्ख-देवसाहस्सोणं मझगए पुरापोराणाणं सुपरक्कताणं 1. देखें सूत्र संख्या 6 2. देखें सूत्र संख्या 78 3. देखें सूत्र संख्या 74 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org