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________________ 174] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र दर्शक सुविधापूर्वक देख सकें / यथाविधि समुद्भावित मृदंग-निनाद से महोत्सव गुंजाया जाता रहे / नगरसज्जा में लगाई गई या लोगों द्वारा पहनी गई मालाएँ कुम्हलाई हुई न हों, ताजे फूलों से बनी हों। प्रमोद-प्रानन्दोल्लास, मनोरंजन, खेल-तमाशे चलते रहें / ) यह घोषणा कर मुझे अवगत कराओ। राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर वे कौटुम्बिक पुरुष बहुत हर्षित तथा परितुष्ट हुए, आनन्दित हुए / उनके मन में बड़ी प्रसन्नता हुई / हर्ष से उनका हृदय खिल उठा / उन्होंने विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार किया। स्वीकार कर वे शीघ्र ही हाथी पर सवार हुए, (विनीता राजधानी के सिंघाटक-तिकोने स्थानों, तिराहों, चौराहों, चत्वरों-जहाँ चार से अधिक मार्ग मिलते हों, ऐसे स्थानों तथा बड़े-बड़े राजमागों में उच्च स्वर से) उन्होंने राजा के आदेशानुरूप घोषणा की / घोषणा कर राजा को अवगत कराया। विराट् राज्याभिषेक-समारोह में अभिषिक्त राजा भरत सिंहासन से उठा / स्त्रीरत्न सुभद्रा, (बत्तीस हजार ऋतुकल्याणिकाओं तथा बत्तीस हजार जनपदकल्याणिकाओं और बत्तीस-बत्तीस पात्रों, अभिनेतव्य क्रमोपक्रमों से अनुबद्ध) बत्तीस हजार नाटकों-नाटक-मंडलियों से संपरिक्त वह राजा अभिषेक-पीठ से उसके पूर्वी त्रिसोपानोपगत मार्ग से नीचे उतरा। नीचे उतरकर अभिषेकमण्डप से बाहर निकला। बाहर निकलकर जहाँ प्राभिषेक्य हस्तिरत्न था, वहाँ जाकर अंजनगिरि के शिखर के समान उन्नत गजराज पर आरूढ हुआ। राजा भरत के अनुगत बत्तीस हजार प्रमुख राजा अभिषेक-पीठ से उसके उत्तरी त्रिसोपानोपगत मार्ग से नीचे उतरे / राजा भरत का सेनापतिरत्न, सार्थवाह आदि अभिषेक-पीठ से उसके दक्षिणी त्रिसोपानोपगत मार्ग से नीचे उतरे। प्राभिषेक्य हस्तिरत्न पर प्रारूढ राजा के आगे पाठ मंगल-प्रतीक रवाना किये गये। आगे का वर्णन पूर्ववर्ती एतत्सदृश प्रसंग से संग्राह्य है / तत्पश्चात् राजा भरत स्नानघर में प्रविष्ट हुआ। स्नानादि परिसंपन्न कर भोजन-मण्डप में आया, सुखासन पर या शुभासन पर बैठा, तेले का पारणा किया। पारणा कर भोजन-मण्डप से निकला / भोजन-मण्डप से निकल कर वह अपने श्रेष्ठ उत्तम प्रासाद में गया। वहाँ मृदंग बज रहे थे। (बत्तीस-बत्तीस पात्रों, अभिनेतव्य क्रमोपकमों से नाटक चल रहे थे, नृत्य हो रहे थे / यो नाटककार, नृत्यकार, संगीतकार, राजा का मनोरंजन कर रहे थे, गीतों द्वारा राजा का कीति-स्तवन कर रहे थे।) राजा उनका आनन्द लेता हुआ सांसारिक सुखों का भोग करने लगा। प्रमोदोत्सव में बारह वर्ष पूर्ण हो गये। राजा भरत जहाँ स्नानघर था, वहाँ आया। स्नान कर वहाँ से निकला, जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी, (जहाँ सिंहासन था, वहाँ पाया / ) वहाँ आकर पूर्व की ओर मुंह कर सिंहासन पर बैठा। सिंहासन पर बैठकर सोलह हजार देवों का सत्कार किया, सम्मान किया। उनको सत्कृत, सम्मानित कर वहाँ से विदा किया। बत्तीस हजार प्रमुख राजाओं का सत्कार-सम्मान किया / सत्कृत, सम्मानित कर उन्हें विदा किया / सेनापति रत्न, पुरोहित रत्न आदि का, तीन सौ साठ सूपकारों का, अठारह श्रेणी-प्रश्रेणीजनों का, बहुत से माण्डलिक राजाओं, ऐश्वर्यशाली, प्रभावशाली पुरुषों, राजसम्मानित विशिष्ट नागरिकों तथा सार्थवाह आदि का सत्कार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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