________________ तृतीय वक्षस्कार] [173 .. सोलह हजार देवों ने (अगर आदि सुगन्धित पदार्थों एवं आमलक ग्रादि कसैले पदार्थों से संस्कारित, अनुवासित अति सुकुमार रोप्रों वाले तौलिये से राजा का शरीर पोंछा / शरीर को पोंछ कर उस पर गोशीर्ष चन्दन का लेप किया। लेप कर राजा को दो देवदूष्य-दिव्य वस्त्र धारण कराये। वे इतने बारीक और वजन में इतने हलके थे कि नासिका से निकलने वाली हवा से भी दूर सरक जाते। वे इतने रूपातिशययुक्त थे---सुन्दर थे कि उन्हें देखते ही नेत्र आकृष्ट हो जाते / उनका वर्णरंग तथा स्पर्श बड़ा उत्तम था / वे घोड़े के मुंह से निकलने वाली लार--मुखजल से भी अत्यन्त कोमल थे, सफेद रंग के थे / उनकी किनार सोने से सोने के तारों से खचित थी--बुनाई में सोने के तारों से समन्वित थी। उनकी प्रभा-दीप्ति प्रकाश-स्फटिक—अत्यन्त स्वच्छ स्फटिक-विशेष जैसी थी। वे अहत-छिद्ररहित थे—कहीं से भी कटे हुए नहीं थे—सर्वथा नवीन थे, दिव्य द्युतियुक्त थे / वस्त्र पहनाकर उन्होंने राजा के गले में अठारह लड का हार पहनाया। हार पहनाकर अर्धहार-नौ लड का हार, एकावली-इकलड़ा हार, मुक्तावली-मोतियों का हार, कनकावली-स्वर्णमणिमय हार, रत्नावली-रत्नों का हार, प्रालम्ब-स्वर्णमय, विविध मणियों एवं रत्नों के चित्रांकन से युक्त देहप्रमाण आभरण विशेष- हार-विशेष पहनाया / अंगद भुजाओं के बाजूबन्द, त्रुटित-तोड़े, कटकहाथों में पहनने के कड़े पहनाये / दशों अंगुलियों में दश अंगूठियाँ पहनाईं। कमर में कटिसूत्र—करधनी या करनोला पहनाया, दुपट्टा ओढ़ाया, मुरकी--कानों को चारों ओर से घेरने वाला कर्णभूषण, जो कानों से नीचे आने पर गले तक लटकने लगता है, पहनाया। कुण्डल पहनाये, चूड़ामणि-शिरोभूषण धारण करवाया / ) विभिन्न रत्नों से जड़ा हुआ मुकुट पहनाया। तत्पश्चात् उन देवों ने दर्दर तथा मलय चन्दन की सुगन्ध से युक्त, केसर, कपूर, कस्तूरी आदि के सारभूत, सघन-सुगन्ध-व्याप्त रस-इत्र राजा पर छिड़के। उसे दिव्य पुष्पों की माला पहनाई। उन्होंने उसको ग्रन्थिम--सूत आदि से गुंथी हुई, वेष्टिम-वस्तुविशेष पर लपेटी हुई, (पूरिमवंश-शलाका आदि पंजर—पोल–रिक्त स्थान में भरी हुई तथा संघातिम—परस्पर सम्मिलित अनेक के एकीकृत-समन्वित रूप से विरचित) चार प्रकार की मालाओं से समलंकृत किया-विभूषित किया। उनसे सुशोभित राजा कल्पवृक्ष सदृश प्रतीत होता था। इस प्रकार विशाल राज्याभिषेक समारोह में अभिषिक्त होकर राजा भरत ने अपने कौटाम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर उनसे कहा-देवानुप्रियो ! हाथी पर सवार होकर तुम लोग विनीता राजधानी के तिकोने स्थानों, तिराहों, चौराहों, चत्वरों-जहाँ चार से अधिक रास्ते मिलते हैं, ऐसे स्थानों तथा विशाल राजमार्गों पर जोर-जोर से यह घोषणा करो कि इस उपलक्ष्य में मेरे राज्य के निवासी बारह वर्ष पर्यन्त प्रमोदोत्सव मनाएं। इस बीच राज्य में कोई भी क्रय-विक्रय आदि सम्वन्धी शुल्क, संपत्ति आदि पर प्रतिवर्ष लिया जाने वाला राज्य-कर नहीं लिया जायेगा / लभ्य मेंग्राह्य में किसी से यदि कुछ लेना है, पावना है, उसमें खिचाव न किया जाए, जोर न दिया जाए, आदान-प्रदान का, नाप-जोख का क्रम बन्द रहे, राज्य के कर्मचारी, अधिकारी किसी के घर में प्रवेश न करें, दण्ड–यथापराध राजग्राह्य द्रव्य-जुर्माना, कुदण्ड-बड़े अपराध के लिए दण्डरूप में लिया जाने वाला अल्पद्रव्य-थोड़ा जुर्माना--ये दोनों ही न लिये जाएं। (ऋण के सन्दर्भ में कोई विवाद न हो, राजकोष से धन देकर ऋणी का ऋण चुका दिया जाए-ऋणी को ऋणमुक्त कर दिया जाए। विविध प्रकार के नाटक, नृत्य आदि आयोजित कर समारोह को सुन्दर बनाया जाए, जिसे सभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org