________________ नमि को कंकण की ध्वनि सुनकर यहीं पर वैराग्य उबुद्ध हुआ था।३० चतुर्थ निह्नव अश्वमित्र ने वीरनिर्वाण के 220 वर्ष पश्चात् सामुच्छेदिकवाद का यहीं से प्रवर्तन किया था / ' दशपूर्वधारी आर्य महागिरि का मुख्य रूप से विहार क्षेत्र भी मिथिला रहा है। 2 बाणगंगा और गंडक दो नदियाँ प्राचीन काल में इस नगर के बाहर बहती थीं / 33 स्थानांगसूत्र में दस राजधानियों का जो उल्लेख है, उसमें मिथिला भी एक है। * जातक के अनुसार मिथिला के राजा मखादेव ने अपने सर पर एक पके बाल को देखा तो उसे संसार की नश्वरता का अनुभव हुआ / वे संसार को छोड़कर त्यागी बने और आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि प्राप्त की / 34 तथागत बुद्ध भी अनेक बार मिथिला पहुँचे थे। उन्होंने वहां मखादेव और ब्रह्मायुसुत्तों का प्रवचन दिया था। 31 थेरथेरीगाथा के अनुसार वासिट्ठी नामक एक थेरी ने तथागत बुद्ध का उपदेश सुना और बौद्ध धर्म में प्रवजित हुए।" बौद्ध युग में मिथिला के राजा सुमित्र ने धर्म के अभ्यास में अपने आपको तल्लीन किया था। मिथिला विज्ञों को जन्मभूमि रही है। मिथिला के तर्कशास्त्री प्रसिद्ध रहे हैं। ईस्वी सन् की नवमी सदी के प्रकाण्ड पण्डित मण्डन मिश्र वहीं के थे। उनकी धर्मपत्नी ने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में पराजित किया था। महान् नैयायिक वाचस्पति मिश्र को यह जन्मभूमि थी। मैथिली कवि विद्यापति यहां के राजदरबार में रहते थे। कितने ही विद्वान् सीतामढ़ी के पास मुहिला नामक स्थान को प्राचीन मिथिला का अपभ्रश मानते हैं / 38 जम्बूद्वीप गणधर गौतम भगवान महावीर के प्रधान अन्तेवासी थे। वे महान् जिज्ञासु थे। उनके अन्तर्मानस में यह प्रश्न उद्बुद्ध हुआ कि जम्बूद्वीप कहाँ है ? कितना बड़ा है ? उसका संस्थान कैसा है ? उसका आकार/ स्वरूप कैसा है ? समाधान करते हुए भगवान् महावीर ने कहा-वह सभी द्वीप-समुद्रों में प्राभ्यन्तर है। वह तिर्यक्लोक के मध्य में स्थित है, सबसे छोटा है, गोल है। अपने गोलाकार में यह एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा है। इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोस एक सौ प्रहाईस धनुष और साढे तेरह अंगूल से कुछ अधिक है। इसके चारों ओर एक वज्रमय दीवार है। उस दीवार में एक जालीदार गवाक्ष भी है और एक महान् पद्मवरवेदिका है। पद्मवरवेदिका के बाहर एक विशाल वन-खण्ड है। जम्बूद्वीप के विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित-ये चार द्वार हैं। जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र कहाँ है ? उसका स्वरूप क्या है? दक्षिणाद्ध भरत और उत्तरार्द्ध भरत वैताढ्य नामक पर्वत से किस प्रकार विभक्त हुआ है? वैताढ्य पर्वत कहाँ है ? बैताढ्य पर्वत पर विद्याधर श्रेणियाँ किस प्रकार हैं ? वैताढ्य पर्वत के कितने कूट/शिखर हैं ? सिद्धायतन कूट कहाँ है ? दक्षिणाई भरतकूट कहाँ है ? ऋषभकूट पर्वत कहाँ है ? आदि का विस्तृत वर्णन प्रथम वक्षस्कार में किया गया है। जिज्ञासुगण इसका अध्ययन करें तो उन्हें बहुत कुछ अभिनव सामग्री जानने को मिलेगी। 30. उत्तराध्ययन सुखबोधावत्ति, पत्र 136-143 31. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 131 32. आवश्यक नियुक्ति, गाथा 762 . 33. विविधतीर्थकल्प पृ. 32 34. जातक I. 137-138 35. मज्झिमनिकाय II, 74 और आगे 133 36. थेरथेरी माथा, प्रकाशक-पालि टेक्सट्स सोसायटी 136-137 37. बील, रोमांटिक लीजेंड पाव द शाक्य बुद्ध, पृ. 30 38. दी एन्शियण्ट ज्योग्राफी ऑफ इण्डिया, पृ. 718 [21] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org