________________ 154] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र जोहाण य उप्पत्ती, प्रावरणाणं च पहरणाणं च / सव्वा य जुद्धणीई, माणवगे दंडणीई अ॥ णट्टविही णाडगविही, कव्वस्स य चउम्विहस्स उत्पत्ती। संखे महाणिहिंमी, तुडिअंगाणं च सन्वेसि // 10 // चक्कट्ठपइट्ठाणा, अठ्ठस्सेहा य णव य विक्खंभा। बारसदीहा मंजू-संठिया जण्हवीइ मुहे // 11 // वेरुलिअमणिकवाडा, कणगमया विविहरयणपडिपुण्णा।। ससिसूरचक्कलक्खण अणुसमवयणोववत्ती या // 12 // पलिओवमढिईश्रा, णिहिसरिणामा य तत्थ खलु देवा।। जेसि ते आवासा, अक्किज्जा आहिवच्चा य / / 13 / / एए णवणिहिरयणा, पभूयधणरयणसंचयसमिद्धा। जे वसमुपगच्छंति, भरहाविवचक्कवट्टीणं // 14 // तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालारो पडिणिक्खमइ, एवं मज्जणघरपवेसो जाव सेणिपसे णिसद्दावणया जाव णिहिरयणाणं प्रवाहियं महामहिमं करेइ / तए णं से भरहे राया णिहिरयणाणं अट्ठाहिनाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणोए सुसेणं सेणावइरयणं सद्दावेइ 2 ता एवं वयासी-गच्छ णं भो देवाणुप्पिया ! गंगामहाणईए पुरथिमिल्लं णिक्खुडं दुच्चंपि सगंगासागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि अ प्रोअवेहि 2 ता एप्रमाणत्ति पच्चप्पिणाहित्ति / तए णं से सुसेणे तं चेव पुव्ववणिग्रं भाणिग्रन्वं जाव ओमवित्ता तमाणत्तिों पच्चप्पिणइ पडिविसज्जेइ जाव भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ। तए णं से दिव्वे चक्करयणे अन्नया कयाइ पाउहघरसालाओ पडिणिवखमइ 2 त्ता अंतलिवलपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिवतुडिय-(सहसणिणादेणं) श्रापूरते चेव विजयवखंधावारणिवेसं मज्झमझेणं णिगच्छइ दाहिणपच्चत्थिमं दिसि विणीअं रायहाणि अभिमुहे पयाए यावि होत्था। तए णं से भरहे राया जाव' पासइ 2 त्ता हट्टतुट्ठ जाव' कोड बियपुरिसे सहावेइ 2 ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिा ! प्राभिसेक्कं (हत्थिरयणं पडिकप्पेह हयगयरहपवरजोहकलिअं चाउरंगिणि सेण्णं सष्णाहेह, एत्तमाणतिरं पच्चप्पिणह, तए णं ते कोडुबियपुरिसे तमाणत्तियं) पच्चप्पिणंति। 1. देखें सूत्र संख्या 50 2. देखें सूत्र संख्या 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only .. www.jainelibrary.org