________________ तृतीय वक्षस्कार] [153 इनका वर्णन पूर्ववत् है। केवल इतना अन्तर है, ये नदियां खण्डप्रपात गुफा के पश्चिमी भाग से निकलती हुई, निकलकर आगे बढ़ती हुई पूर्वी भाग में गंगा महानदी में मिल जाती हैं। शेष वर्णन पूर्ववत् संग्राह्य है। केवल इतना अन्तर है, पुल गंगा के पश्चिमी किनारे पर बनाया। तत्पश्चात् खण्डप्रपात गुफा के दक्षिणी द्वार के कपाट क्रौञ्चपक्षी की ज्यों जोर से अावाज करते हुए सरसराहट के साथ स्वयमेव अपने स्थान से सरक गये, खुल गये। चक्ररत्न द्वारा निर्देशित मार्ग का अनुसरण करता हुआ, (समुद्र के गर्जन की ज्यों सिंहनाद करता हुआ, अनेक राजाओं से संपरिवृत) राजा भरत निविड अन्धकार को चीर कर आगे बढ़ते हुए चन्द्रमा की ज्यों खण्डप्रपात गुफा के दक्षिणी द्वार से निकला। नवनिधि-प्राकटय 82. तए णं से भरहे राया गंगाए महाणईए पच्चस्थिमिल्ले कूले दुवालसजोअणायाम णवजोअविच्छिण्णं (वरणगरसरिच्छं) विजयक्खंधावारणिवेसं करेइ / अवसिटुं तं चेव जाव निहिरयणाणं अट्ठमभत्तं पगिण्हइ / तए णं से भरहे राया पोसहसालाए जाव णिहिरयणे मणसि करेमाणे करेमाणे चिट्ठइत्ति, तस्स य अपरिमियरत्तरयणा धुमक्खयमव्वया सदेवा लोकोपचयंकरा उवगया णव णिहिरो लोगविस्सुअजसा, तं जहा नेसप्पे 1, पंडुअए 2, पिंगलए 3, सव्वरयणे 4, महपउमे 5 / काले 6, अ महाकाले 7, माणवगे महानिही 8 संखे // 1 // सप्पमि णिवेसा, गामागरणगरपट्टणाणं च / दोणमुहमडंबाणं खंधावारावणगिहाणं // 2 // गणिअस्स य उप्पत्ती, माणुम्माणस्स जं पमाणं च / धष्णस्स य बोआण, य उप्पत्ती पंडुए भणिआ॥३॥ सम्वा प्राभरणविही, पुरिसाणं जा य होइ महिलाणं। प्रासाण य हत्थीण य, पिंगलणिहिमि सा भणिया // 4 // रयणाई सन्वरयणे, चउदस वि वराइं चक्कवट्टिस्स। उप्पज्जते एगिदिआई पंचिदिआइं च // 5 // वत्थाण य उत्पत्ती, णिप्फत्ती चेव सवभत्तीणं / रंगाण य धोव्वाण य, सव्वा एसा महापउमे // 6 // काले कालण्णाणं, सवपुराणं च तिसु वि वंसेसु / सिप्पसयं कम्माणि अतिण्णि पयाए हिअकराणि // 7 // लोहस्स य उत्पत्ती, होइ महाकालि आगराणं च / रुप्पस्स सुवण्णस्स य, मणिमुत्तसिलप्पवालाणं // 8 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org