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________________ तृतीय वक्षस्कार] [155 [82] तत्पश्चात्-गुफा से निकलने के बाद राजा भरत ने गंगा महानदी के पश्चिमी तट पर बारह योजन लम्बा, नौ योजन चोड़ा, श्रेष्ठ-नगर-सदश सैन्यशिविर स्थापित किया। अागे का वर्णन मागध देव को साधने के सन्दर्भ में पाये वर्णन जैसा है। फिर राजा ने नौ निधिरत्नों को उत्कृष्ट निधियों को उद्दिष्ट कर तेले को तपस्या स्वीकार की। तेले की तपस्या में अभिरत राजा भरत नौ निधियों का मन में चिन्तन करता हुआ पौषधशाला में अवस्थित रहा / नौ निधियां अपने अधिष्ठातृ-देवों के साथ वहाँ राजा भरत के समक्ष उपस्थित हुई / वे निधियाँ अपरिमित-अनगिनत लाल, नीले, पीले, हरे, सफेद आदि अनेक वर्गों के रत्नों से युक्त थीं, ध्रव, अक्षय तथा अव्यय-अविनाशी थीं, लोकविश्रुत थीं। वे इस प्रकार थीं.-- 1. नैसर्प निधि, 2. पाण्डुक निधि, 3. पिंगलक निधि, 4. सर्वरत्न निधि, 5. महापद्म निधि, 6. काल निधि, 7. महाकाल निधि, 8. माणवक निधि तथा 6. शंखनिधि / वे निधियां अपने-अपने नाम के देवों से अधिष्ठित थीं। 1. नैसर्प निधि-ग्राम, प्राकर, नगर, पट्टन, द्रोणमुख, मडम्ब, स्कन्धावार, आपण तथा भवन -इनके स्थापन–समुत्पादन की विशेषता लिये होती है। . 2. पाण्डुक निधि-गिने जाने योग्य---दोनार, नारिकेल आदि, मापे जाने वाले धान्य आदि, तोले जाने वाले चीनी, गुड़ आदि, कलम जाति के उत्तम चावल आदि धान्यों के बीजों को उत्पन्न करने में समर्थ होती है। 3. पिंगलक निधि-पुरुषों, नारियों, घोड़ों तथा हाथियों के प्राभूषणों को उत्पन्न करने की विशेषता लिये होती है। 4. सर्वरत्न निधि-चक्रवर्ती के चौदह उत्तम रत्नों को उत्पन्न करती है। उनमें चक्ररत्न, दण्डरत्न, असिरत्न, छत्ररत्न, चर्मरत्न, मणिरत्न तथा काकणीरत्न-ये सात एकेन्द्रिय होते हैं। सेनापति रत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकिरत्न, पुरोहितरत्न, अश्वरल, हस्तिरत्न तथा स्त्रीरत्न-ये सात पंचेन्द्रिय होते हैं। 5. महापद्म निधि-सब प्रकार के वस्त्रों को उत्पन्न करती है। वस्त्रों के रंगने, धोने आदि समग्र सज्जा के निष्पादन की वह विशेषता लिये होती है। 6. काल निधि–समस्त ज्योतिषशास्त्र के ज्ञान, तीर्थंकर-वंश, चक्रवर्ति-वंश तथा बलदेववासुदेव-वंश--इन तीनों में जो शुभ, अशुभ घटित हुआ, घटित होगा, घटित हो रहा है, उन सबके ज्ञान, सौ प्रकार के शिल्पों के ज्ञान, उत्तम, मध्यम तथा अधम कर्मों के ज्ञान को उत्पन्न करने की विशेषता लिये होती है। 7. महाकाल निधि-विविध प्रकार के लोह, रजत, स्वर्ण, मणि, मोती, स्फटिक तथा प्रवाल-मूगे आदि के आकरों-खानों को उत्पन्न करने की विशेषतायुक्त होती है। 8. माणवक निधि-योद्धाओं, पावरगों--शरीर को प्रावृत करने वाले, सुरक्षित रखने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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