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________________ 148] [जम्मूतोषप्राप्तिमूत्र से सम्बद्ध शुल्क, सम्पत्ति आदि पर लिया जाने वाला राज्य-कर आदि न लिये जाएँ / मेरे आदेशानुरूप यह कार्य परिसम्पन्न कर मुझे अवगत करायो / राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर वे अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि जन अपने मन में हर्षित हुए। उन्होंने राजा के आदेशानुरूप सब व्यवस्थाएं की, महोत्सव आयोजित करवाया। वैसा कर उन्होंने राजा को सूचित किया / ) क्षुद्र हिमवान्-गिरिकुमार देव को विजय करने के उपलक्ष्य में समायोजित अष्ट दिवसीय महोत्सव के सम्पन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला / बाहर निकलकर उसने दक्षिण दिशा में वैताढय पर्वत की ओर प्रयाण किया। नमि-विनमि-विजय ___ 80. तए णं से भरहे राया तं दिवं चक्करयणं जाव' वेपद्धस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले णितंबे तेणेव उवागच्छइ 2 ता वेअद्धस्स पम्वयस्स उत्तरिल्ले णितंबे बुवालसजोयणायामं जाव पोसहसालं अणुपविसइ जाव णमिविणमीणं विज्जाहरराईणं अट्ठमभत्तं पगिण्हइ 2 ता पोसहसालाए (अट्टमभत्तिए) णमिविणमिविज्जाहररायाणो मणसि करेमाणे 2 चिट्ठइ। तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि णमिविणमिविज्जाहररायाणो दिव्वाए मईए चोइअमई अण्णमण्णस्स अंतिसं पाउम्भवंति 2 ता एवं वयासी उप्पण्णे खलु भो देवाणुप्पिश्रा ! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी तं जोनमेनं तोअपच्चुप्पण्णमणागयाणं विज्जाहरराईणं चक्कवट्टीणं उवत्थाणिों करेत्तए, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! अम्हेवि भरहस्स रण्णो उवत्थाणिकं करेमो इति कटु विणमी णाऊणं चक्कट्टि दिव्वाए मईए चोइअमई माणुम्माणप्पमाणजुत्तं तेअस्सि रूवलक्खणजुत्तं ठिअजुन्वणकेसड्डिअणहं सव्वरोगणासणि बलकरि इच्छिअसोउण्हफासजुत्तं-- तिसु तणअं तिसु तंब तिवलीगतिउण्णयं तिगंभीरं / तिसु कालं तिसु सेनं तिप्रायतं तिसु अविच्छिण्णं // 1 // समसरीरं भरहे वासंमि सन्वमहिलपहाणं सुदरथणजघणवरकरचलणणयणसिरसिजदसणजणहिअयरमणमणहरि सिंगारगारं-(चारुवेसं संगयगयहसिमभणिचिट्ठिअविलासललिप्रसंलावनिउण-) जुत्तोक्यारकुसलं अमरवहणं सुरूवं रूवेणं अणुहरंतों सुभदं भइंमि जोवणे वट्टमाणि इत्योरयणं णमी अ रयणाणि य कडगाणि य तुडिआणि अगेण्हइ 2 ता ताए उक्किट्ठाए तुरिमाए जाव' उद्ध आए विज्जाहरगईए जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति 2 ता अंतलिखपडिवण्णा सखिखिणीयाई (पंचवण्णाई वत्थाई पवर-परिहिए करयलपरिग्गहिरं दसणहं सिर-जाव अंजलि कटु भरहं रायं) 1. देखें सूत्र 50 2. देखें सूत्र 62 3. देखें सूत्र 51 4. देखें सूत्र 34 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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