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________________ 140] [अम्बूतीपप्राप्तिसूत्र मुढिप्पमाणमित्ताहि धाराहि श्रोधमेघ सत्तरत्तं वास वासह, तं एवमवि गते इत्तो खिप्पामेव अवक्कमह अहव णं अज्ज पासह चित्तं जीवलोगं / तए णं ते मेहमुहा णागकुमारा देवा तेहिं देवेहिं एवं वुत्ता समाणा भीमा तत्था वहिला उविग्गा संजायभया मेघानीकं पडिसाहरंति 2 ता जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उवागच्छंति 2 ता प्रावाडचिलाए एवं क्यासी-एस णं देवाणुप्पिा ! भरहे राया महिड्डिए (महज्जुईए जाव महासोक्खे) णो खलु एस सक्को केणइ देवेण वा (दाणवेण वा किण्णरेण वा कि पुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा सत्थप्पोगेण वा) अग्गिप्पओगेण वा (मंतप्पओगेण वा) उवद्दवित्तए वा पडिसेहित्तए वा तहावि अणं ते अम्हेहि देवाणुप्पिना ! तुम्भं पियट्टयाए भरहस्स रण्णो उवसग्गे कए, गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिा ! व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउअमंगलपायच्छित्ता उल्लपडसाडगा प्रोचूलगणिअच्छा अम्गाई वराई रयणाई गहाय पंजलिउडा पायवडिया भरहं रायाणं सरणं उवेह, पणिवइअवच्छला खलु उत्तमपुरिसा, पत्थि मे भरहस्स रण्णो प्रतिमाओ भयमिति कट्ट / एवं वदित्ता जामेव दिसि पाउन्भूआ तामेव दिसि पडिगया। तए ते प्रावाडचिलाया मेहमुहेहिं णागकुमारेहिं देवेहिं एवं धुत्ता समाणा उट्ठाए उठेति 2 त्ता व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउअमंगलपायच्छित्ता उल्लपडसाडगा प्रोचूलगणिअच्छा अग्गाई बराई रयणाइं गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति 2 ता करयलपरिग्गहिन जाव' मत्थए अंजलि कटु रायं जएणं विजएणं वद्धाविति 2 ता अग्गाई वराई रयणाई उवणेति 2 त्ता एवं वयासी वसुहर गुणहर जयहर, हिरिसिरिधीकित्तिधारकारद / लक्खणसहस्सधारक, रायमिदं णे चिरं धारे // 1 // हयवइ गयवइ गरवइ, णवणिहिवइ भरहवासपढमवई / बत्तीसजणवयसहस्सराय, सामी चिरं जीव // 2 // पढमणरीसर ईसर, हिअईसर महिलिआसहस्साणं / देवसयसाहसीसर, चोहसरयणीसर जसंसी // 3 // सागरगिरिमेराग, उत्तरवाईणमभिजिन तुमए / ता अम्हे देवाणुप्पिअस्स विसए परिवसामो // 4 // अहो णं देवाणुप्पिआणं इड्डी जुई जसे बले वोरिए पुरिसक्कारपरक्कमे दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभावे लद्ध पत्ते अभिसमण्णागए / तं दिट्ठा णं देवाणुप्पिाणं इड्डी एवं चेव (जुई जसे बले वीरिए परिसक्कारपरक्कमे दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभावे लद्ध पत्ते) अभिसमण्णागए। तं खामेमु णं देवाणप्पिा ! खमंतु णं देवाणुप्पिआ! खंतुमरहतु णं देवाणुप्पिया ! गाइ भुज्जो भुज्जो एवंकरणाएत्ति कटु पंजलिउडा पायवडिआ भरहं रायं सरणं विति। 1. देखें सूत्र संख्या 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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