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________________ थी। जातक की दृष्टि से इस राष्ट्र का विस्तार 300 योजन था उसमें सोलह सहस्र गांव थे / यह देश और राजधानी दोनों का ही नाम था। आधुनिक शोध के अनुसार यह नेपाल की सीमा पर स्थित था। वर्तमान में जो जनकपुर नामक एक कस्बा है, वही प्राचीन युग की मिथिला होनी चाहिए। इसके उत्तर में मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिला मिलते हैं। बील ने विव्यान डी. सेंट माटिन को उद्धत किया है, जिन्होंने चैन-सु-ना नाम (Chen-su-na) को जनकपुरी से सम्बन्धित माना है। रामायण के अनुसार राजा जनक के समय राजर्षि विश्वामित्र को अयोध्या से मिथिला पहुँचने में चार दिन का समय लगा था। वे विश्राम के के लिए विशाला में रुके थे। रीज डेविड्स के अभिमतानुसार मिथिला वैशाली से लगभग 35 मील पश्चिमोत्तर में अवस्थित थी, वह सात लीग और विदेह राज्य 300 लोग विस्तृत था। जातक के अनुसार यह अंग को बम्पा से 60 योजन की दूरी पर थी। विदेह का नामकरण विदेष माधव के नाम पर हया है जिसने शतपथब्राह्मण 10 के अनुसार यहाँ उपनिवेश स्थापित किया था। पपञ्चसूदनी, धम्मपद अट्ठकथा के अनुसार विदेह का नाम सिनेरु पर्वत के पूर्व में स्थित एशिया के पूर्वी उपमहाद्वीप पूम्बविदेह के प्राचीन आप्रवासियों या प्रागन्तुकों से ग्रहण किया है। महाभारतकार' ने इस क्षेत्र को भद्राश्ववर्ष कहा है। भविष्यपुराण की दृष्टि से निमि के पुत्र मिथि ने मिथिला नगर का निर्माण कराया था। प्रस्तुत नगर के संस्थापक होने से वे जनक के नाम से विश्रुत हुए।४ मिथि के अाधार पर मिथिला का नामकरण हुआ और वहां के राजाओं को मैथिल कहा गया।'५ जातक के अनुसार मिथिला के चार द्वार थे और प्रत्येक द्वार पर एक-एक बाजार था। इन बाजारों में पशुधन के साथ हीरे-पन्ने, माणिक-मोती. सोना-चांदी 3. सुरुचि जातक (सं. 489) भाग 4, पृ. 521-522 4. जातक (सं. 406) भाग 4, पृष्ठ 27 5. (क) लाहा, ज्याँग्रेफी ऑव अर्ली बुद्धिज्म, पृ. 31 (ख) कनिंघम, ऐंश्येंट ज्यॉग्रेफी प्रॉव इंडिया, एस. एन. मजुमदार संस्करण पृ. 718 (ग) कनिंघम, आालॉजिकल सर्वे रिपोर्ट,XVI, 34 6. बील, बुद्धिस्ट रिकार्डस ऑव द वेस्टर्न वल्डं, II, प्र. 78, टिप्पणी 7. रामायण, वंगवासी संस्करण, 1-3 8. (क) जातक III. 365 (ख) जातक, IV, पृ.३१६ 9. जातक VI. पृ. 32 10. शतपथब्राह्मण I, IV, 1 11. पपञ्चसूदनी, सिंहली संस्करण, I. पृ. 484 12. धम्मपद अकया, सिंहलो संस्करण, II. पृ. 482 13. महाभारत, भीष्मपर्व, 6, 12, 13, 7, 13, 6, 31 14. भागवतपुराण, IX. 13313 15. (क) वायुपुराण 89 / 6 / 23 (ख) ब्रह्माण्डपुराण, III. 64 / 6 / 24 (ग) विष्णुपुराण, IV. 5 // 14 16. जातक VI. पृ. 330 [19] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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