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________________ तृतीय वक्षस्कार [129 गच्चंति, तं ण णज्जइ णं देवाणुप्पिा ! अम्हं विसयस्स के मन्ने उवद्दवे भविस्सइत्ति कटु ओहयमणसंकप्पा चिंतासोगसागरं पविट्ठा करयलपल्हत्थमुहा अट्टज्माणोवगया भूमिगयदिट्ठिा झिायंति। तए णं से भरहे राया चक्करयणदेसिअमग्गे (अणेगरायसहस्साणुआयमग्गे महयाउक्किट्ठसीहगायबोलकलकलरवेणं) समुद्दरवभून पिव करेमाणे 2 तिमिसगुहानो उत्तरिल्लेणं दारेणं णोति ससिब्ब मेहंधयारणिवहा। तए णं ते आवाडचिलाया भरहस्स रण्णो अग्गाणीन एज्जमाणं पासंति 2 त्ता प्रासुरुत्ता रुट्ठा चंडिक्किआ कुविआ मिसिमिसेमाणा अण्णमण्णं सद्दाति 2 ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिा ! केइ अप्पत्थिप्रपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुग्णचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जे णं अम्हं विसयस्स उरि विरिएणं हव्वमागच्छइ तं तहा णं घत्तामो देवाणुप्पिया ! जहा गं एस अम्हं विसयस्स उरि विरिएणं णो हव्वमागच्छइत्तिकटु अण्णमण्णस्स अंतिए एअमळं पडिसुर्णेति 2 ता सण्णद्धबद्धवम्मियकवा उप्पोलिअसरासणपट्टिा पिणद्धगेविज्जा बद्धप्राविद्धविमलवचिंधपट्टा गहियाउहप्पहरणा जेणेव भरहस्स रणो अग्गाणीअं तेणेव उवागच्छंति 2 ता भरहस्स रण्णो अग्गाणोएण सद्धि संपलग्गा यावि होत्था। तए णं ते आवाडचिलाया भरहस्स रणो अग्गाणी यमहिअपवरवीरघाइअविवडिअचिधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसि पडिसेहिति / |72] उस समय उत्तरार्ध भरतक्षेत्र में आवाड-आपात संज्ञक किरात निवास करते थे। वे आढय-सम्पत्तिशाली, दीप्त-दीप्तिमान् प्रभावशाली, वित्त-अपने जातीय जनों में विख्यात, भवन रहने के मकान, शयन-ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र, आसन-बैठने के उपकरण, यान-मालअसबाब ढोने की गाड़ियाँ, वाहन-सवारियां आदि विपुल साधन सामग्री तथा स्वर्ण, रजत आदि प्रचुर धन के स्वामी थे / आयोग-प्रयोग-संप्रवृत्त-व्यावसायिक दृष्टि से धन के सम्यक् विनियोग और प्रयोग में निरत-कुशलतापूर्वक द्रव्योपार्जन में संलग्न थे। उनके यहाँ भोजन कर चुकने के बाद भी खाने-पीने के बहुत पदार्थ बचते थे। उनके घरों में बहुत से नौकर-नौकरानियाँ, गायें, भैंसें, बैल, पाड़े, भेड़ें, बकरियाँ आदि थीं। वे लोगों द्वारा अपरिभूत-अतिरस्कृत थे—इतने रौबीले थे कि उनका कोई तिरस्कार या अपमान करने का साहस नहीं कर पाते थे। वे शूर थे—अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह करने में, दान देने में शौर्यशाली थे, युद्ध में वीर थे, विक्रांत-भूमण्डल को पाक्रान्त करने में समर्थ थे। उनके पास सेना और सवारियों की प्रचुरता एवं विपुलता थी। अनेक ऐसे युद्धों में, जिनमें मुकाबले की टक्करें थीं, उन्होंने अपना पराक्रम दिखाया था। उन आपात संज्ञक किरातों के देश में अकस्मात् सैकड़ों उत्पात-अनिष्टसूचक निमित्त उत्पन्न हुए / असमय में बादल गरजने लगे, असमय में विजली चमकने लगी, फूलों के खिलने का समय न आने पर भी पेड़ों पर फूल पाते दिखाई देने लगे / आकाश में भूत-प्रेत पुन:-पुनः नाचने लगे। ग्रापात किरातों ने अपने देश में इन सैकड़ों उत्पातों को आविर्भूत होते देखा। वैसा देखकर वे आपस में कहने लगे-देवानुप्रियो ! हमारे देश में असमय में बादलों का गरजना, असमय में विजली का चमकना, असमय में वृक्षों पर फल पाना, आकाश में वार-बार भूत-प्रेतों का नाचना आदि सैकड़ों उत्पात प्रकट हुए हैं। देवानुप्रियो ! न मालूम हमारे देश में कैसा उपद्रव होगा। वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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