________________ 128] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र __ तत्पश्चात् अनेक नरेशों से युक्त राजा भरत चकरल द्वारा निर्देशित किये जाते मार्ग के सहारे आगे बढ़ता हुना उच्च स्वर से (समुद्र के गर्जन की ज्यों) सिंहनाद करता हुआ सिन्धु महानदी के पूर्वी तट पर अवस्थित उन्मग्नजला महानदी के निकट पाया / वहाँ आकर उसने अपने वर्द्धकिरत्न कोअपने श्रेष्ठ शिल्पी को बुलाया / उसे बुलाकर याही- 'देवानुप्रिय ! उन्मग्नजला तथा निमग्नजला महानदियों पर उत्तम पुलों का निर्माण करो, जो सेकड़ों खंभों पर सन्निविष्ट हों-भली-भाँति टिके हों, अचल हों, अकम्प हों-सुदृढ़ हों, कवच की ज्यों अभेद्य हों-जिनके ऊपरी पर्त भिन्न होने वाले– टूटनेवाले न हों, जिनके ऊपर दोनों ओर दीवारें बची हों, जिससे उन पर चलने वाले लोगों को चलने में पालम्बन रहे, जो सर्वथा रत्नमय हों। मेरे आदेशानुरूप यह कार्य परिसम्पन्न कर मुझे शीघ्र मूचित करो।' राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर वह शिल्पी छापने चित्त में हर्षित, परितुष्ट एवं ग्रानन्दित हुआ। उसने विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार किया / राजाज्ञा स्वीकार कर उसने शीघ्र ही उन्मग्नजला तथा निमग्नजला नामक नदियों पर उत्तम पुलों का निर्माण कर दिया, जो सैकड़ों खंभों पर भली भांति टिके थे (अचल थे, अकम्प थे, कवच की ज्यों अभेद्य थे अथवा जिनके ऊपरी पर्त भिन्न होने वाले--टूटने वाले नहीं थे, जिनके ऊपर दोनों सोर दीवारें बनी थीं, जिससे उन पर चलने वालों को चलने में आलम्बन रहे, जो सर्वथा रत्नमय थे)। ऐसे पुलों की रचना कर वह शिल्पकार जहाँ जा भरत था, वहाँ आया। वहाँ अाकर राजा को अवगत कराया कि उनके आदेशानुरूप पुल-निर्माण हो गया है। तत्पश्चात् राजा भरत अपनी समग्र सेना के साथ उन पुलों द्वारा, जो सैकड़ों खंभों पर भलीभांति टिके थे (अचल थे, अकम्प थे, कवच की ज्यों अभेद्य थे अथवा जिनके ऊपरी पर्त भिन्न होने वाले-टूटने वाले नहीं थे, जिनके ऊपर दोनों मोवारें बनी थीं, जिससे उन पर चलने वालों को चलने में पालम्बन रहे, जो सर्वथा रत्नमय थे), उन्मग्नजला तथा निमग्नजल नामक नदियों को पार किया / यों ज्योंही उसने नदियां पारं की, नमिम्रा गुफा के उत्तरी द्वारा के कपाट क्रोञ्च पक्षी की तरह अावाज करते हुए सरसराहट के साथ अपने ग्राप सपने स्थान से सरक गये-खुल गये / आपात किरातों से संग्राम 72. तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरडनरहे वासे बहवे आवाडा णाम चिलाया परिवसंति, अड्डा दित्ता वित्ता विच्छिण्णविउलभवणसयणासणजाणवाहणाइन्ना बहुधणबहुजायरूवरयया आओगपप्रोगसंपउत्ता विच्छड्डिअपउरभतपाणा बहुदासदासगोमाहिसगवेलगप्पभूआ बहुजणस्स अपरिभूया सूरा वीरा विक्कता विच्छिण्णविउलबलवाहणा बहसु समरसंपराएसु लद्धलक्खा यावि होत्था। __ तए णं तेसिमावाडचिलायाणं अण्णया कयाई विसयंसि बहूइं उप्पाइअसयाई पाउन्भविस्था, तंजहा-अकाले गज्जिअं, अकाले विज्जुमा, अकाले पायवा पुष्फंति, अभिक्खणं 2 मागासे देवयाओ णचंति। तए णं ते आवाडचिलाया विसयंसि बहूई उभ्याइअसयाई पाउन्भूयाई पासंति पासित्ता अण्णमण्णं सदाति 2 ता एवं वयासो-एवं खलु देवाणुप्पिा ! आम्हं विसयंसि बहूई उप्पाइअसयाई पाउन्भूआई तंजहा—अकाले गज्जिन, अकाले विज्जुआ, अकाले पायवा पुष्फंति, अभिक्खगं 2 अागासे देवयाओ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org