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________________ [127 तृतीय वक्षस्कार] गोयमा ! जगणं उम्मग्गजलाए महाण ईए तणं वा पत्तं वा बटुवा सपकरं वा प्रासे वा हत्थी वा रहे वा जोहे वा मणुस्से वा पविखप्पइ तरुणं उम्मग्गजलामहाणई तिवखुत्तो आहुणिअ 2 एगते चलंसि एडेइ, जणं णिमग्गजलाए महाणईए तणं वा पत्तं वा कटू वा सक्करं वा (आसे वा हत्थी वा रहे वा जोहे वा) मणुस्से वा पविखप्पइ तण्णं णिमग्गजलामहाणई तिवखुत्तो आणि 2 अंतो गलंसि णिमज्जावेइ, से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ उम्मग्ग-णिमग्गजलाप्रो महाणईओ। तए णं से भरहे राया चक्करयणदेसिअमग्गे अणेगराय० महया उक्किट्ट सीहणाय (बोलकलकलसद्देणं समुद्दरवभूयंपिय) करेमाणे 2 सिंधूए महाणईए पुरच्छिमिल्ले णं कूडे णं जेणेव उम्मग्गजला महाणई तेणेव उवागच्छइ 2 ता वद्धइरयणं सद्दावेइ 2 ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिना! उम्मग्गणिमग्गजलासु महाणईसु अणेगखंभसयसरिणविठे अयलमकंपे अभेज्नकवए सावणबाहाए सव्वरयणामए सुहसंकमे करेहि करेत्ता मम एअमाणत्तिनं खिप्पामेव पच्चप्पिणाहि / तए णं से वद्धइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुट्ठचित्तमाणदिए जाव' विणएणं पडिसुणेइ 2 ता खिप्पामेव उम्मग्गणिमग्गजलासु महाणईसु प्रणेगखंभसयसणिविट्ठ (अयलमकंपे अमेज्जकवए सालवणवाहाए सम्वरयणामए)सुहसंकमे करेइ 2 ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छद 2 ता जाव' एप्रमात्तिनं पच्चप्पिणइ। तए णं से भरहे राया सखंधावारबले उम्मग्गणिमग्गजलाओ महाणईयो तेहि अणेगखंभसमसण्णिविठ्ठहि (प्रयलमकंपेहि अभेज्जकवएहि सालंबणबाहाएहि सत्वरयणामएहि) सुहसंकमेहि उत्तरह, तए णं तीसे तिमिसगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सयमेव महया 2 कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाग्गाइं 2 ठाणाई पच्चोसक्किस्था। [71] तमिस्रा गुफा के ठीक बीच में उन्मग्नजला तथा निमग्नजला नामक दो महानदियां प्ररूपित की गई हैं, जो तमिस्रा गुफा के पूर्वी भित्तिप्रदेश से निकलती हुई पश्चिम भित्ति प्रदेश होती हुई सिन्धु महानदी में मिलती हैं / भगवन् ! इन नदियों के उन्मग्नजला तथा निमग्नजला—ये नाम किस कारण पड़े ? गौतम ! उन्मग्नजला महानदी में तृण, पत्र, काष्ठ, पाषाणखण्ड-पत्थर का टुकड़ा, घोड़ा, हाथी, रथ, योद्धा-पदाति या मनुष्य जो भी प्रक्षिप्त कर दिये जाएँ-गिरा दिये जाएँ तो वह नदी उन्हें तीन बार इधर-उधर घुमाकर किसी एकान्त, निर्जल स्थान में डाल देती है। निमग्नजला महानदी में तृण, पत्र, काष्ठ, पत्थर का टुकड़ा (घोड़ा, हाथी, रथ, योद्धापदाति) या मनुष्य जो भी प्रक्षिप्त कर दिये जाएं--गिरा दिये जाएं तो वह उन्हें तीन बार इधर-उधर घुमाकर जल में निमग्न कर देती है—डुबो देती है। गौतम ! इस कारण से ये महानदियां क्रमश: उन्मग्नजला तथा निमग्नजला कही जाती हैं। 1. देखें सूत्र संख्या 44 2. देखें सूत्र संख्या 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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