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________________ नृतीय वक्षस्कार] [121 पति सुषेण इस प्रकार अपनी इच्छा के अनुरूप शब्द, स्पर्श, रम, रूप तथा गन्धमय पांच प्रकार के मानवोचित, प्रिय कामभोगों का आनन्द लेने लगा। तमिस्रा गुफा : दक्षिणद्वारोद्घाटन 66. तए णं से भरहे राया अण्णया कयाई सुसेणं सेणावई सहावेइ 2 ता एवं वयासीगच्छ णं खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ ! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विधाडेहि 2 त्ता मम एअमत्ति पच्चप्पिणाहि त्ति। तए णं से सुसेणे सेणावई भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुटुचित्तमाणदिए जाव' करयलपरिग्गहिर सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु (एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं) पडिसुणेइ 2 ता भरहस्स रण्णो अंतियानो पडिमिक्खिमइ 2 त्ता जेणेव सए प्रावासे जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ 2 ता दब्भसंथारगं संथरइ (संथरित्ता दम्भसंथारगं दुरूहइ 2 ता) कयमालस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी जावअट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ 2 ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ 2 सा व्हाए कयबलिकम्मे कयकोउअमंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पवेसाई मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्धाभरणालंकियसरीरे धूवपुप्फगंधमल्लहत्थगए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ 2 ता जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा तेणेव पहारेत्थ गमणाए / तए णं तस्स सुसेणस्स सेणावइस्स बहवे राईसरतलवरमाडंबिन जाव' सत्थवाहप्पभिइयो अप्पेगइआ उप्पलहत्थगया जाव' सुसेणं सेणावई पिट्ठओ 2 अणुगच्छंति / तए णं तस्स सुसेणस्स सेणावइस्स बहूईओ खुज्जाओ चिलाइआओ (वामणिग्रानो वडभीयो बम्बरोओ बउसिआओ जोणियाओ पल्हवियानो ईसिणियायो चारुकिणियानो लासियामो लउसियाओ दमिलोआओ सिंह लियाओ अरबोओ पुलिंदीओ पक्कणिआओ बहलिग्रामो मुरुडीओ सबरीओ पारसोयो) इंगिचितिअपत्थिअविआणिआश्रो जिउणकुसलाओ विणीआओ अप्पेगइयायो कलसहत्थगाओ (चंगेरीपुष्फपडलहत्थगनाओ भिगारआदंसथालपातिसुपइट्ठगवायकरगरयणकरंडपुप्फचंगेरोमल्लवण्णचुण्णगंधहत्थगआओ वत्थआभरणलोमहत्थयचंगेरीपुष्फपडलहत्थगआयो जाव लोमहत्थगनाओ अप्पेगइयाओ सोहासणहत्थगआओ छत्तचामरहत्यगाओ तिल्लसमुग्गयहत्थगनाओ) अणुगच्छंतीति / तए णं से सुसेणे सेणावई सम्विद्धोए सबजुईए जाव' णिग्घोसणाइएणं जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा तेणेव उवागच्छइ 2 त्ता आलोए पणामं करेइ 2 ता लोमहत्थगं 1. देखें सूत्र संख्या 44 2. देखें मुत्र संख्या 50 3. देखें सूत्र संख्या 44 4. देखें मूत्र संख्या 88 5. देखें सूत्र संख्या 52 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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