________________ 122] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र परामुसइ 2 त्ता तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे लोमहत्थेणं पमज्जइ 2 त्ता दिवाए उदगधाराए अब्भुक्खेइ 2 त्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितले चच्चए दलइ 2 ता अग्गेहिं वरेहि गंधेहि अ मल्लेहि अ अच्चिइ 2 ता पुप्फारहणं (मल्लगंधवण्णचुण्ण-) वत्थारुहणं करेइ 2 त्ता आसत्तोसत्तविपुलवट्ट-(वग्धारियमल्लदामकलावं) करेइ 2 ता अच्छेहि सणेहिं रययामएहि अच्छरसातंडुलेहि तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडाणं पुरओ अट्ठमंगलए आलिहइ, तंजहा-सोत्थियसिरिवच्छ-(णंदिआवत्तवद्धमाणगभद्दासणमच्छकलसप्पणए) कयग्गहगहिनकरयल-पभट्ट-चंदप्पभवइरवेरुलिअविमलदंडं कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरुपवरकुदरुक्कतुरुक्कधूवगंधुत्तमाणुविद्धच धूमट्टि विणिम्मुअंतं वेरुलिअमयं कडुच्छुअं पग्गहेतु पयते) धूवं दलयइ 2 ता वामं जाणु अचेइ 2 ता करयल जाव' मत्थए अंजलि कटु कवाडाणं पणामं करेइ 2 त्ता दंडरयणं परामुसइ / तए णं तं दंडरयणं पंचलइ वइरसारमइ विणासणं सव्वसत्तुसेण्णागं खंधावारे परवइस्स गड्ढ-दरि-विसमपन्भारगिरिवरपवायाणं समीकरणं संतिकरं सुभकरं हितकर रण्णो हिअ-इच्छिी -मणोरहपूरगं दिव्वमप्पडिहयं दंडरयणं गहाय सत्तटुपयाई पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे दंडरयणेणं महया 2 सद्देणं तिक्खुत्तो प्राउडेइ / तए णं तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सुसेणसेणावणा दंडरयणेणं महया 2 सद्देणं तिक्खुत्तो पाउडिया समाणा महया 2 सद्देणं कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाई 2 ठाणाई पच्चोसक्कित्था। तए णं से सुसेणे सेणावई तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेइ २त्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ 2 त्ता (तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता) करयलपरिग्गहि (दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि क१) जएणं विजएणं बद्धावेइ 2 त्ता एवं वयासी-विहाडिया णं देवाणुप्पिया ! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा एअण्णं देवाणुप्पिआणं पिअंगिवेएमो पिनं भे भवउ / तए गं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अंतिए एयम→ सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठचित्तमाणदिए जाव हिसाए सुसेणं सेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ, सपकारिता सम्माणित्ता कोड बिअपुरिसे सद्दावेइ 2 ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिा ! अाभिसेक्कं हस्थिरयणं पडिकप्पेह हयगयरहपवर-(जोहकलिआए चाउरंगिणीए सेण्णाए सद्धि संपरिवुडे महयाभडचडगरपहगरवंदपरिक्खित्ते महया उविकडिसीहणायबोलकलकलसद्देणं समुद्दरवमूयंपिव करेमाणे) अंजणगिरिकूडसणिभं गयवरं परवई दुरुढे / [66] राजा भरत ने सेनापति सुषेण को बुलाया / बुलाकर उससे कहा-'देवानुप्रिय ! जानो, शीघ्र ही तमिस्रा गुफा के दक्षिणी द्वार के दोनों कपाट उद्घाटित करो। वैसा कर मुझे सूचित करो। 1. देखें सूत्र संख्या 44 2. देखें सूत्र संख्या 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org