________________ द्वितीय वक्षस्कार] [85 तीसे णं समाए तओ वंसा समुप्पज्जिस्संति, तंजहा---तित्थगरवंसे, चक्कवट्टिवंसे, दसारवंसे। तीसे गं समाए तेवीसं तित्थगरा, एक्कारस चक्कवट्टी, णव बलदेवा, णव वासुदेवा समुप्पज्जिस्संति / तीसे णं समाए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिआए काले वीइक्कते अणतेहि वण्णपज्जवेहि जाव' अणंतगुणपरिवुद्धीए परिवद्ध माणे 2 एत्थ णं सुसमदूसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! सा णं समा तिहा विभजिस्सइ-पढमे तिभागे, मज्झिमे तिभागे, पच्छिमे तिभागे / तोसे णं भंते ! समाए पढमे तिभाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सइ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे जाव भविस्सइ। मणुप्राणं जा वेव प्रोसप्पिणीए पच्छिमे तिभागे वत्तल्वया सा भाणिवा, कुलगरवज्जा उसमसामिवज्जा। अण्णे पढंति तंजहा-तोसे णं समाए पढमे तिभाए इमे पण्णरस कुलगरा समुप्पज्जिस्संति तंजहा-सुमई, पडिस्सुई, सीमंकरे, सीमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, विमलवाहणे, चक्खुमं, जसमं, अभिचंदे, चंदाभे, पसेणई, मरुदेवे, णाभी, उसभे, सेसं तं चेव, दंडणीईओ पडिलोमानो अचानो। तीसे णं समाए पढमे तिभाए रायधम्मे (गणधभ्मे पाखंडधम्मे अग्गिधम्मे) धम्मचरणे प्र वोच्छिज्जिस्सइ। तीसे णं समाए मज्झिमपच्छिमेसु तिभागेसु पढममज्झिमेसु वत्तव्वया प्रोसप्पिणीए सा भाणिअव्वा, सुसमा तहेव, सुसमसुसमावि तहेव जाव छव्विहा मणुस्सा अणुसज्जिस्संति जाव सण्णिचारी। [50] उस काल में उत्सर्पिणी काल के दुःषमा नामक द्वितीय प्रारक में भरतक्षेत्र का प्राकार-स्वरूप कैसा होगा? गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय होगा / (मुरज के तथा मृदंग के ऊपरी भाग-चर्मपुट जैसा समतल होगा, अनेक प्रकार की, पंचरंगी कृत्रिम एवं अकृत्रिम मणियों से उपशोभित होगा) उस समय मनुष्यों का आकार-प्रकार कैसा होगा? गौतम ! उन मनुष्यों के छह प्रकार के संहनन एवं संस्थान होंगे / उनकी ऊँचाई अनेक हाथसात हाथ की होगी। उनका जघन्य अन्तमुहूर्त का तथा उत्कृष्ट कुछ अधिक-तेतीस वर्ष अधिक सौ वर्ष का आयुष्य होगा / प्रायुष्य को भोगकर उन में से कई नरक-गति में, (कई तिर्यञ्च-गति में, कई मनुष्य-गति में), कई देव-गति में जायेंगे, किन्तु सिद्ध नहीं होंगे। 1. देखें सूत्र संख्या 28 2. देखें सूत्र यही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org