________________ द्वितीय वक्षस्कार] [81 भगवन् ! ढंक-काक विशेष, कंक-कठफोड़ा, पीलक, मद्गुक-जल काक, शिखी-मयूर, जो प्रायः मांसाहारी, (मत्स्याहारी, क्षुद्राहारी तथा कुणपाहारी होते हैं, मरकर) कहाँ जायेंगे ? कहाँ जन्मेंगे? गौतम ! वे प्रायः नरकगति और तिर्यञ्चगति में जायेंगे / आगमिष्यत् उतपिणीः दुःषम-दुःषमा-दुषमकाल 47. तोसे णं समाए इक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले वीइक्कंते आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सावणबहुलपडिवए बालवकरणंसि अभीइणक्खत्ते चोहसपढमसमये अणंतेहिं वण्णपज्जवेहि जाव' अणंतगुण-परिविद्धीए परिवद्धमाणे 2 एत्थ णं दूसमसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोसारे भविस्सइ ? गोयमा ! काले भविस्सइ हाहाभूए, भंभाभूए एवं सो चेव दूसमदूसमावेढयो अन्यो। तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले विइक्कते अगतेहि वण्णपज्जवेहिं जाव' अणंतगुणपरिवुद्धीए परिवद्धमाणे 2 एत्थ णं दूसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो ! [47] आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस काल के अवसर्पिणी काल के छठे आरक के इक्कीस हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर पाने वाले उत्सर्पिणी-काल का श्रावण मास, कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के दिन बालब नामक करण में चन्द्रमा के साथ अभिजित् नक्षत्र का योग होने पर चतुर्दशविध काल के प्रथम समय में दुषम-दुषमा आरक प्रारम्भ होगा। उसमें अनन्त वर्णपर्याय आदि अनन्तगुण-परिवृद्धि-क्रम से परिवद्धित होते जायेंगे। भगवन् ! उस काल में भरतक्षेत्र का प्राकार-स्वरूप कैसा होगा? आयुष्यन् श्रमण गौतम ! उस समय हाहाकारमय, चीत्कारमय स्थिति होगी, जैसा अवसपिणी-काल के छठे प्रारक के सन्दर्भ में वर्णन किया गया है / उस काल के उत्सपिणी के प्रथम प्रारक दुःषम-दुषमा के इक्कीस हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर उसका दुःषमा नामक द्वितीय प्रारक प्रारम्भ होगा। उसमें अनन्त वर्णपर्याय आदि अनन्तगुण-परिवृद्धि-क्रम से परिवद्धित होते जायेंगे। जल-क्षीर-घृत-अमृतरस-वर्षा 48, तेणं कालेणं तेणं समएणं पुक्खलसंवट्टए णामं महामेहे पाउभविस्सइ भरहप्पमाणमित्ते पायामेणं, तदणुरूवं च णं विक्खंभबाहल्लेणं / तए णं से पुक्खलसंवट्टए महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ, खिप्पामेव पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुमाइस्सइ, खिप्पामेव पविज्जुमाइत्ता खिप्पामेव 1. देखें सूत्र संख्या 28 / / देखें सूत्र संख्या 35 3. 1. निःश्वास उच्छ्वास, 2. प्राण, 3. स्तोक, 4. लव, 5. मुहूर्त, 6. अहोरात्र, 7. पक्ष, ८.मास, 9. ऋतु, 10. अयन, 11. संवत्सर, 12. युग, 13. करण, 14. नक्षत्र / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org