________________ 82] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र जुगमुसलमुट्टिप्पमाणमित्ताहि धाराहि प्रोघमेघ सत्तरतं वासं वासिस्सइ, जेणं भरहस्स वासस्स भूमिभागं इंगाल भूअं, मुम्मरभूअं, छारिप्रभूध, तत्त-कवेल्लुगभूअं, तत्तसमजोइभूअं णिवाविस्सति त्ति। तंसि च णं पुक्खलसंवट्टगंसि महामेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि एत्थ णं खीरमेहे णामं महामेहे पाउभविस्सइ, भरहप्पमाणमेत्ते पायामेणं, तदणुरूवं च णं विवखंभवाहल्लेणं / तए णं से खोरमेहे णामं महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ (खिप्पामेव पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुप्राइस्सइ, खिप्पामेव पविज्जुमाइता) खिप्पामेव जुगलमुसलमुट्ठि-(प्पमाणमित्ताहि धाराहि श्रोघमेघं) सत्तरत्तं वासं वासिस्सइ, जेणं भरहवासस्स भूमीए वणं गंधं रसं फासं च जणइस्सइ। तंसि च णं खीरमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि इत्थ णं धयमेहे णामं महामेहे पाउन्भविस्सइ, भरहप्पमाणमेत्ते पायामेणं, तदणुरूवं च णं विक्खंभवाहल्लेणं / तए णं से घयमेहे महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ जाव' वासं वासिस्सइ, जेणं भरहस्स वासस्स भूमीए सिणेहभावं जणइस्सइ। तसि च णं घयमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि एत्थ णं अमयमेहे णामं महामेहे पाउभविस्सइ, भरहप्पमाणमित्तं पायामेणं, (तदणुरूवं च णं विक्खंभवाहल्लेणं / तए णं से अमयमेहे णामं महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ, खिप्पामेवे पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुमाइस्सइ, खिप्पामेव पविज्जुआइत्ता खिप्पामेव जुगमुसलमुट्ठिप्पमाणमित्ताहिं धाराहि प्रोघमेधं सत्तरत्तं) वासं वासिस्सइ जेणं भरहे वासे रुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तण-पव्वग-हरित-प्रोसहि-पवालंकुर-माईए तणवणस्सइकाइए जणइस्सइ। तंसि च णं अमयमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि एत्थ णं रसमेहे णामं महामेहे पाउन्भविस्सइ, भरहप्पमाणमेत्ते पायामेणं, (तदणुरूवं च विक्खंभवाहल्लेण / तए णं से रसमेहे णामं महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ, खिप्पामेव पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुमाइस्सइ, खिप्पामेव पविज्जुप्राइत्ता खिप्पामेव जुगमुसलमुट्टिप्पमाणमित्ताहि धाराहि ओघमेघं सत्तरत्तं) वासं वासिस्सइ, जेणं तेसि बहूणं रुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तण-पब्वग-हरित-प्रोसहि-पवालंकुर-मादीणं तित्त-कडुअ-कसायअंबिल-महुरे पंचविहे रसविसेसे जणइस्सइ / . तए णं भरहे वासे भविस्सइ परूढरुक्खगुच्छगुम्मलयवल्लितणपन्वयगहरिप्रमोसहिए, उचियतय-पत्त-पवालंकुर-पुष्फ-फलसमुइए, सुहोवभोगे प्रावि भविस्सइ / [48] उस उत्सर्पिणी-काल के दु:षमा नामक द्वितीय प्रारक के प्रथम समय में भरतक्षेत्र की अशुभ अनुभावमय रूक्षता, दाहकताअादि का अपने प्रशान्त जल द्वारा शमन करने वाला पुष्कर-संवर्तक नामक महामेघ प्रकट होगा। वह महामेघ लम्बाई, चौड़ाई तथा विस्तार में भरतक्षेत्र प्रमाण भरत क्षेत्र जितना होगा। वह पुष्कर-संवर्तक महामेघ शीघ्र ही गर्जन करेगा, गर्जन कर शीघ्र ही विद्युत् से युक्त होगा--उसमें बिजलियाँ चमकने लगेंगी, विद्युत्-युक्त होकर शीघ्र ही वह युग--रथ के अवयव१. देखें सूत्र यही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org