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________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र देह-परिमाण–शरीर की ऊँचाई एक हाथ-चौबीस अंगुल की होगी। उनका अधिकतम आयुष्यस्त्रियों का सोलह वर्ष का तथा पुरुषों का बीस वर्ष का होगा। अपने बहुपुत्र-पौत्रमय परिवार में उनका बड़ा प्रणय-प्रेम या मोह रहेगा / वे गंगा महानदी, सिन्धु महानदी के तट तथा वैताढ्य पर्वत के आश्रय में बिलों में रहेंगे। वे बिलवासी मनुष्य संख्या में बहत्तर होंगे। उनसे भविष्य में फिर मानव-जाति का विस्तार होगा।' भगवन् ! वे मनुष्य क्या आहार करेंगे ? गौतम ! उस काल में गंगा महानदी और सिन्धु महानदी-ये दो नदियाँ रहेंगी। रथ चलने के लिए अपेक्षित पथ जितना मात्र उनका विस्तार होगा। उनमें रथ के चक्र के छेद की गहराई जितना गहरा जल रहेगा। उनमें अनेक मत्स्य तथा कच्छप-कछुए रहेंगे। उस जल में सजातीय अप्काय के जीव नहीं होंगे। वे मनुष्य सूर्योदय के समय तथा सूर्यास्त के समय अपने बिलों से तेजी से दौड़ कर निकलेंगे। बिलों से निकल कर मछलियों और कछुओं को पकड़ेंगे, जमीन पर किनारे पर लायेंगे / किनारे पर लाकर रात में शीत द्वारा तथा दिन में प्रातप द्वारा उनको रस रहित बनायेंगे, सुखायेंगे सूखायेंगे। इस प्रकार वे अतिस रस खाद्य को पचाने में असमर्थ अपनी जठराग्नि के अनुरूप उन्हें अाहारयोग्य बना लेंगे / इस पाहार-वृत्ति द्वारा वे इक्कीस हजार वर्ष पर्यन्त अपना निर्वाह करेंगे। ___ भगवन् ! वे मनुष्य, जो निःशील-शीलरहित-प्राचाररहित, निव्रत-महाव्रत-अणुव्रतरहिन, निर्गुण-उत्तरगुणरहित, निर्मर्याद—कुल अादि की मर्यादाओं से रहित, प्रत्याख्यान त्याग, पौषध व उपवासरहित होंगे, प्रायः मांस-भोजी, मत्स्य-भोजी, यत्र-तत्र अवशिष्ट क्षुद्र-तुच्छ धान्यादिकभोजी, कुणिपभोजी-शवरस-वसा या चर्बी प्रादि दुर्गन्धित पदार्थ-भोजी होंगे। अपना आयुष्य समाप्त होने पर मरकर कहाँ जायेंगे, कहाँ उत्पन्न होंगे ? गौतम ! वे प्रायः नरकगति और तिर्यञ्चगति में उत्पन्न होंगे। भगवन् ! तत्कालवर्ती सिंह, बाघ, भेड़िए, चीते, रीछ, तरक्ष–व्याघ्रजातीय हिंसक जन्तुविशेष, गेंडे, शरभ-अष्टापद, शृगाल, बिलाव, कुत्ते, जंगली कुत्ते या सूअर, खरगोश, चीतल तथा चिल्ललक, जो प्रायः मांसाहारी, मत्स्याहारी, क्षुद्राहारी तथा कुणपाहारी होते हैं, मरकर कहाँ जायेंगे ? कहाँ उत्पन्न होंगे? गौतम ! प्रायः नरकगति और तिर्यञ्चगति में उत्पन्न होंगे। 1. छठे आरे के वर्णन में ऐसा भी उल्लेख पाया जाता है 21000 वर्ष 'दुःखमा-दुःखमा' नामक छ8 पारे का आरम्भ होगा, तब भरतक्षेत्राधिष्ठित देव पञ्चम आरे के विनाश पाते हुए पशु मनुष्यों में से बीज रूप कुछ पशु, मनुष्यों को उठाकर वैतादय गिरि के दक्षिण और उत्तर में जो गंगा और सिन्धु नदी हैं, उनके पाठों किनारों में से एक-एक तट में नव-नव बिल हैं एवं सर्व 32 बिल हैं और एक-एक बिल में तीन-तीन मंजिल हैं, उनमें उन पशु व मनुष्यों को रखेंगे। 72 बिलों में से 63 बिलों में मनुष्य, 6 बिलों में स्थलचर-पशु एवं 3 बिलों में खेचर पक्षी रहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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