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________________ 78] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र तीसे णं भंते ! समाए सीहा, बग्घा, विगा, दीवित्रा, अच्छा, तरस्सा, परस्सरा, सरभसियालबिरालसुणगा, कोलसुणगा, ससगा, चित्तगा, चिल्ललगा प्रोसम्णं मंसाहारा, मच्छाहारा, खोद्दाहारा, कुणिमाहारा कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति कहिं उववजिहिति ? गोयमा ! पोसण्णं णरगतिरिक्खजोणिएसु उववजिहिंति। . ते णं भंते ! ढंका, कंका, पीलगा, मग्गुगा, सिही प्रोसण्णं मंसाहारा, (मच्छाहारा, खोद्दाहारा, कुणिमाहारा कालमासे कालं किच्चा) कहिं गछिहिंति कहिं उववजिहिंति ? गोयमा ! प्रोसण्णं णरगतिरिक्खजोणिएसु-(गच्छिहिति) उववजिहिति / / {46] आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस समय के-पचम प्रारक के इक्कीस हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर अवसर्पिणी काल का दुःषम-दुःषमा नामक छठा प्रारक प्रारंभ होगा। उसमें अनन्त वर्णपर्याय, गन्धपर्याय, रसपर्याय तथा स्पर्शपर्याय आदि का क्रमशः ह्रास होता जायेगा। भगवन् ! जब वह पारक उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुँचा होगा, तो भरतक्षेत्र का प्राकारस्वरूप कैसा होगा? गौतम ! उस समय दुःखार्ततावश लोगों में हाहाकार मच जायेगा, गाय आदि पशुओं में भंभाअत्यन्त दुःखोद्विग्नता से चीत्कार फैल जायेगा अथवा भंभा–भेरी के भीतरी भाग की शून्यता या सर्वथा रिक्तता के सदृश वह समय विपुल जन-क्षय के कारण जन-शून्य हो जायेगा। उस काल का ऐसा ही प्रभाव है। तब अत्यन्त कठोर, धूल से मलिन, दुर्विषह-दुस्सह, व्याकुल-आकुलतापूर्ण भयंकर वायु चलेंगे, संवर्तक-तृण, काष्ठ आदि को उड़ाकर कहीं का कहीं पहुँचा देने वाले वायु-विशेष चलेंगे। उस काल में दिशाएँ अभीक्ष्ण-क्षण क्षण---पुन: पुन: धुआं छोड़ती रहेंगी / वे सर्वथा रज से भरी होंगी, धूल से मलिन होंगी तथा घोर अंधकार के कारण प्रकाशशून्य हो जायेंगी। काल की रूक्षता के कारण चन्द्र अधिक अहित-अपथ्य शीत-हिम छोड़ेंगे / सूर्य अधिक असह्य, जिसे सहा न जा सके, इस रूप में तपेंगे / गौतम ! उसके अनन्तर अरसमेघ---मनोज्ञ रस-वजित जलयुक्त मेघ, विरसमेघविपरीत रसमय जलयुक्त मेघ, क्षारमेघ-खार के समान जलयुक्त मेघ, खात्रमेघ-करीष सदृश रसमय जलयुक्त मेघ, अथवा अम्ल या खट्टे जलयुक्त मेघ, अग्निमेघ–अग्नि सदृश दाहक जलयुक्त मेघ, विद्युन्मेष-विद्युत-बहुल जलवजित मेघ अथवा बिजली गिराने वाले मेघ, विषमेघ-विषमय वर्षक मेघ. अयापनीयोदक-अप्रयोजनीय जलयक्त, व्याधि--कृष्ट आदि लम्बी बीमारी, रोग-शुल आदि सद्योघाती फौरन प्राण ले लेने वाली बीमारी जैसे वेदनोत्पादक जलयुक्त, अप्रिय जलयुक्त मेघ, तूफानजनित तीव्र प्रचुर जलधारा छोड़ने वाले मेघ निरंतर वर्षा करेंगे। भरतक्षेत्र में ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्वट, मडम्ब, द्रोणमुख, पट्टन, आश्रमगत जनपद-- मनुष्यवन्द, गाय आदि चौपाये प्राणी, खेचर—वैताढ्य पर्वत पर निवास करने वाले गगनचारी विद्याधर, पक्षियों के समूह, गाँवों और वनों में स्थित द्वीन्द्रिय आदि त्रस जीव, बहुत प्रकार के पाम्र आदि वृक्ष, वृन्ताकी आदि गुच्छ, नवमालिका आदि गुल्म, अशोकलता आदि लताएँ, वालुक्य प्रभृति बेलें, पत्ते, अंकुर इत्यादि बादर वानस्पतिक जीव-तृण आदि वनस्पतियाँ, औषधियाँ--इन सबका वे विध्वस कर देंगे / वैताढ्य प्रादि शाश्वत पर्वतों के अतिरिक्त अन्य पर्वत-उज्जयन्त, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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