SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [67 द्वितीय वक्षस्कार] परिनिर्वाण : देवकृत महामहिमा : महोत्सव 40. उसमे णं अरहा कोसलिए वज्ज-रिसह-नाराय-संघयणे, समचउरंस-संठाण-संठिए, पंचधणुसयाई उद्धं उच्चत्तेणं होत्था। उसभे गं अरहा बीसं पुश्वसयसहस्साई कुमारवासमझे वसित्ता, तेवढि पुश्वसयसहस्साई महारज्जवासमझे वसित्ता, तेसीई पुव्वसयसहस्साई अगारवासमझे वसित्ता, मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्बइए। उसमे गं अरहा एगं वाससहस्सं छउमत्थपरिआयं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं वाससहस्सूणं केवलिपरिआयं पाउणित्ता, एगं पुवसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरिआयं पाउणित्ता, चउरासीई पुव्वसयसहस्साइं सवाउनं पालइत्ता जे से हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे माहबहुले, तस्स णं माहबहुलस्स तेरसीपक्खेणं दहि अणगारसहस्सेहिं सद्धि संपरिकुडे अट्ठाक्य-सेलसिहरंसि चोद्दसमेणं भत्तेणं अपाणएणं संपलिअंकणिसण्णे पुज्वण्हकालसमयंसि अभीइणा णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं सुसमदूसमाए समाए एगणणवउईहिं पक्खेहि सेसेहि कालगए वोइक्कते, समुज्जाए छिण्ण-जाइ-जरा-मरण-बंधणे, सिद्ध, बुद्ध, मुत्ते, अंतगडे, परिणिबुड़े सव्वदुक्खप्पहीणे / [40] कौशलिक भगवान् ऋषभ वज्र-ऋषभ-नाराच-संहनन युक्त, सम-चौरस-संस्थानसंस्थित तथा पांच सौ धनुष दैहिक ऊँचाई युक्त थे। वे बीस लाख पूर्व तक कुमारावस्था में तथा तिरेसठ लाख पूर्व महाराजावस्था में रहे / यों तिरासी लाख पूर्व गृहवास में रहे। तत्पश्चात् मुंडित होकर अगार-वास से अनगार-धर्म में प्रवजित हुए। वे एक हजार वर्ष छद्मस्थ-पर्याय-असर्वज्ञावस्था में रहे / एक हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व वे केवलि-पर्याय–सर्वज्ञावस्था में रहे। इस प्रकार परिपूर्ण एक लाख पूर्व तक श्रामण्य-पर्याय—साधुत्व का पालन कर—चौरासी लाख पूर्व का परिपूर्ण आयुष्य भोगकर हेमन्त के तीसरे मास में, पाँचवें पक्ष में --माघ मास कृष्ण पक्ष में तेरस के दिन दस हजार साधुओं से संपरिवृत्त अष्टापद पर्वत के शिखर पर छह दिनों के निर्जल उपवास में पूर्वाह ण-काल में पर्यकासन में अवस्थित, चन्द्र योग युक्त अभिजित् नक्षत्र में, जब सुषम-दु:षमा प्रारक के नवासी पक्ष-तीन वर्ष साढ़े आठ मास बाकी थे, वे (जन्म, जरा एवं मृत्यु के बन्धन छिन्नकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अंतकृत्, परिनिर्वृत्त,) सर्व-दुःख रहित हुए। 41. जं समयं च णं उसमे अरहा कोसलिए कालगए वीइक्कते, समुज्जाए छिण्णजाइ-जरामरण-बंधणे, सिद्ध, बुद्ध, (मुत्ते, अंतगडे, परिणिन्वुडे,) सव्व-दुक्खप्पहीणे, तं समयं च णं सक्कस्स देविदस्स देवरण्णो आसणे चलिए। तए णं से सक्के देविदे, देवराया, पासणं चलिनं पासइ, पासित्ता ओहि पउंजइ, पउंजित्ता भयवं तित्थयरं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता एवं वयासी-परिणिन्वुए खलु जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे उसहे अरहा कोसलिए, तं जोअमेअं तोअपच्चुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं देविदाणं, देवराईणं तित्थगराणं परिनिव्वाणमहिमं करेत्तए। तं गच्छामि णं अहंपि भगवतो तित्थगरस्स परिनिव्वाण-महिमं करेमित्ति कटु वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता, णमंसित्ता चउरासीईए सामाणिअ-साहस्सीहि तायत्तीसाए तायत्तीसएहि, चहि लोगपालेहि, (अहिं अग्गमहिसोहि सपरिवाराहि, तिहिं परिसाहि, सतहि अणोएहि.) चहि चउरासीईहिं आयरक्खदेव-साहस्सीहि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy