________________ सर्य के ताप से अनेक रोगों की चिकित्सा होती है। सौर ऊर्जा से अनेक यंत्र शक्तियों का विकास हो रहा है। इस प्रकार मानव का सूर्य से शाश्वत सम्बन्ध है। जैनागमों में सूर्य के एक "आदित्य"' पर्याय की व्याख्या द्वारा सभी कालविभागों का आदि सूर्य कहा गया है। (3) गह-ग्रह की रचना ग्रह उपादाने धातु से यह ग्रह शब्द सिद्ध होता है। जैनागमों में छह ग्रह और पाठ ग्रह का उल्लेख है।' चन्द्र-सूर्य को ग्रहपति माना है, शेष छ: को ग्रह माना है, राहु-केतु को भिन्न न मानकर एक केतु को ही माना है। प्रवासी ग्रह भी माने हैं। अन्य ग्रन्थों में नौ ग्रह माने हैं। ग्रहों के प्रभाव के सम्बन्ध में वशिष्ठ और बृहस्पति नाम के ज्योतिर्विदाचार्य ने इस प्रकार कहा हैवशिष्ठ-ग्रहा राज्यं प्रयच्छति, ग्रहा राज्यं हरन्ति च / ग्रहैस्तु व्यापितं सर्व, त्रैलोक्यं सचराचरम् / / वृहस्पति---ग्रहाधीनं जगत्सर्व, ग्रहाधीना नरामराः / कालं ज्ञानं ग्रहाधीनं, ग्रहाः कर्मफलप्रदाः / / (३२वां गोचर प्रकरण-बृहदैवज्ञरंजन, पृ. 84) (4) नक्षत्र और नरसमूह नक्षत्र शन्द की रचना 1. न क्षदते हिनस्ति "क्षद" इति सोत्रो धातः हिसार्थ आत्मनेपदी। टन (उ. 4/159) नभ्राण्नपाद (6/3/75) इति नजः प्रकृतिभावः / 1 सूर सहस्स विसिद्वत्थो प्र. से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ-"सूरे आदिच्चे सूरे आदिच्चे" ? उ. गोयमा ! सूरादीया गं समयाइ वा, आवलियाइ वा, जाव ओसप्पिणीइ वा, उस्सप्पिणीइ था। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-"सूरे आदिच्चे सूरे आदिच्चे।- भग. स. 12, उ. 6, सु, 5 सूर्य शब्द का विशिष्टार्थ प्र. हे भगवन् ! सूर्य को "आदित्य" किस अभिप्राय से कहा जाता है ? उ. हे गौतम ! समय, पावलिका पावत् अवसर्पिणी, उत्सपिणी काल का आदि कारण सूर्य है / हे गौतम ! इस कारण से सूर्य “आदित्य" कहा जाता है। 2 छ तारग्गहा पण्णत्ता, तं जहा१. सुक्को , 2. बुहे, 3. बहस्सति, 4. अंगारके, 5. साणिच्छरे, 6. केतू / --ठाणं अ. 6, सु. 48 अट्ठ महग्गहा पण्णत्ता तं जहा१. चन्दे, 2. सूरे, 3. सुक्के, 4. बुहे, 5. बहस्सति, 6. अंगारके, 7. सणिच्छरे, 8 केतू / -ठाणं 8 सू. 6/3 [15] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org