________________ 2. णक्ष गती (भ्वा. प. से.) नक्षति / असि-नक्षि-यजि-वधि-पतिभ्यो न (उ. 3/105) प्रत्यये कृते / 3. न क्षणोति क्षणु हिंसायाम् (त. उ. से.) {ष्ट्रन्) (उ. 4/159) नक्षत्रं / 4. न क्षत्रं देवत्वात् क्षत्र भिन्त्वात् / जो क्षत खतरे से रक्षा करे वह "क्षत्र" कहा जाता है / उस "क्षत्र" का जो "रक्षा करना" धर्म है वह "क्षात्र धर्म" कहा जाता है / क्षत्र की सन्तान "क्षत्रिय" कही जाती है। इस भूतल के रक्षक नर"क्षत्र" हैं और नभ-प्राकाश में रहने वाले रक्षक देव "नक्षत्र" हैं। इन नक्षत्रों का नर क्षत्रों से सम्बन्ध नक्षत्रसम्बन्ध है। अट्ठाईस नक्षत्रों में से "अभिनित्" नक्षत्र को व्यवहार में न लेकर सत्ताईस नक्षत्रों से व्यवहार किया है। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण हैं अर्थात् चार अक्षर हैं। इस प्रकार सत्ताईस नक्षत्रों के 108 अक्षर होते हैं। इन 108 अक्षरों को बारह राशियों में विभक्त करने पर प्रत्येक राशि के ९प्रक्षर होते हैं। इस प्रकार सत्ताईस नक्षत्रों एवं बारह राशियों के 108 अक्षरों से प्रत्येक प्राणी एवं पदार्थों के "नाम" निर्धारित किये जाते हैं। यह नक्षत्र और नर समूह का त्रैकालिक सम्बन्ध है। चर स्थिर आदि सात, अन्ध काण प्रादि चार इन ग्यारह संज्ञाओं से अभिहित ये नक्षत्र प्रत्येक कार्य की सिद्धि आदि में निमित्त होते हैं। रामण्डल तारा शब्द को रचना तारा शब्द स्त्रीलिंग है। तु प्लवन-तरणयो: धातु से "तारा" शब्द की सिद्धि होती है। तरन्ति अनया इति तारा। सांयात्रिक-.-जहाजी व्यापारियों के नाविक रात्रि में समुद्रयात्रा तारामण्डल के दिशाबोध से करते थे। शव तारा सदा स्थिर रहकर उत्तरदिशा का बोध कराता है। शेष दिशाओं का बोध ग्रह, नक्षत्र और राशियों की नियमित गति से होता रहता है। इसलिए नौका आदि के तिरने में जो सहायक होते हैं, वे तारा कहे जाते हैं। रेगिस्तान की यात्रा रात्रि में सुखपूर्वक होती है इसलिए यात्रा के प्रायोजक रात्रि में तारा से दिशाबोध करते हुए यात्रा करते हैं। तारामण्डल के विशेषज्ञ प्रान्त का, देश का शुभाशुभ जान लेते हैं इसलिए तारामों का पृथ्वीतल के प्राणियों से प्रतिनिकट का सम्बन्ध सिद्ध है। इस प्रकार चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा मानव के सुख-दुःख के निमित्त हैं। [16] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org