________________ श्रमजीवी दिन में "श्रम" करते हैं और रात्रि में विश्राम करते हैं। पालादजनक चन्द्र की चन्द्रिका में विश्रान्ति लेकर मानव स्वस्थ हो जाता है इसलिए मानव का निशानाथ से अति निकट का सम्बन्ध सिद्ध होता है। जैनागमों में चन्द्र के एक "शशि" पर्याय की ही व्याख्या है। (2) सूर्य शब्द को रचना सू प्रेरणे धातु से “सूर्य" शब्द सिद्ध होता है / सुवति-प्रेरयति कर्मणि लोकान् इति सूर्यः-जो प्राणिमात्र को कर्म करने के लिए प्रेरित करता है वह सूर्य है। सूरज-ग्रामीण जन "सूर्य" को "सूरज" कहते हैं। सु+ऊर्ज से सूर्ज या सूरज उच्चारण होता है / सु श्रेष्ठ-ऊर्ज = ऊर्जा = शक्ति / सूर्य से श्रेष्ठ शक्ति प्राप्त होती है। सूर्य के पर्याय अनेक हैं / इनमें कुछ ऐसे पर्याय हैं, जिनसे सूर्य का मानव के साथ सहज सम्बन्ध सिद्ध होता है। सहस्रांशु-सूर्य की सहस्र रश्मियों से प्राणियों को जो "ऊष्मा" प्राप्त होती है, वही जगत् के जीवों का जीवन है। प्रत्येक मानव शरीर में जब तक ऊष्मा = गर्मी रहती है, तब तक जीवन है। ऊष्मा समाप्त होने के साथ ही जीवन समाप्त हो जाता है। भास्कर, प्रभाकर, विभाकर, दिवाकर, द्युमणि, अहर्षति, भानु प्रादि पर्यायों से "सूर्य" प्रकाश देने वाला देव है। मानव की सभी प्रवृत्तियों प्रकाश में ही होती हैं / प्रकाश के बिना वह अकिंचित्कर है। ------- 1 ससी सद्दस्स बिसि त्यो प्र. से केणठेणं मंते ! एवं वुच्चई-चंदे ससी, चंदे ससी? उ. गोयमा ! चंदस्स णं जोइसिवस्स जोइसरष्णो मियंके विमाणे, कंता देवा, कताओ देवीओ, कंताई आसण सयण-खंभ-भंडमत्तोवगरणाई, अप्पणा वियणं चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया सोमे कंते सुभए पियवंसणे सुरुवे, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वच्चई-"चंदे ससी, चंदे ससी"। -भग. स. 12, उ. 6, सु.४ शशि शब्द का विशिष्टार्थ प्र. हे भगवन ! चंद्र को "शशि" किस अभिप्राय से कहा जाता है ? उ. हे गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र के मृगांक विमान में मनोहर देव, मनोहर देवियां तथा मनोज्ञ आसन-शयन-स्तम्भ-भाण्ड-पात्र आदि उपकरण हैं और ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र स्वयं भी सौम्य, कान्त, सुभग, प्रियदर्शन एवं सुरूप है। हे गौतम! इस कारण से चन्द्र को "शशि" (या सश्री) कहा जाता है। --- -- [ 14 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org