Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
## Fifteenth Injiyapada: First Uddesaka
[151] In terms of Avagahana, in terms of Pradesh, and in terms of both Avagahana and Pradesh, which of the five sense organs (Shrotrendriya, Chakshusindriya, Ghrānendriya, Jihvādendriya, and Sparshanendriya) is the least, which is the most, which is equal, and which is superior?
[979] Gautama! In terms of Avagahana, Chakshusindriya is the least, Shrotrendriya is Sankhejjaguna (numerically greater) than Chakshusindriya, Ghrānendriya is Sankhejjaguna than Shrotrendriya, Jihvādendriya is Asankhejjaguna (innumerably greater) than Ghrānendriya, and Sparshanendriya is Sankhejjaguna than Jihvādendriya.
In terms of Pradesh, Chakshusindriya is the least, Shrotrendriya is Sankhejjaguna than Chakshusindriya, Ghrānendriya is Sankhejjaguna than Shrotrendriya, Jihvādendriya is Asankhejjaguna than Ghrānendriya, and Sparshanendriya is Sankhejjaguna than Jihvādendriya.
In terms of both Avagahana and Pradesh, Chakshusindriya is the least in terms of Avagahana, Shrotrendriya is Sankhejjaguna than Chakshusindriya in terms of Avagahana, Ghrānendriya is Sankhejjaguna than Shrotrendriya in terms of Avagahana, Jihvādendriya is Asankhejjaguna than Ghrānendriya in terms of Avagahana, Sparshanendriya is Sankhejjaguna than Jihvādendriya in terms of Avagahana, and Chakshusindriya is Anantguna (infinitely greater) than Sparshanendriya in terms of Pradesh, Shrotrendriya is Sankhejjaguna than Chakshusindriya in terms of Pradesh, Ghrānendriya is Sankhejjaguna than Shrotrendriya in terms of Pradesh, Jihvādendriya is Asankhejjaguna than Ghrānendriya in terms of Pradesh, and Sparshanendriya is Sankhejjaguna than Jihvādendriya in terms of Pradesh.
[980] [1] Gautama! How many Karkasha and Guru qualities are there in Shrotrendriya?
[980-1] Gautama! There are Anant (infinite) Karkasha and Guru qualities in Shrotrendriya.
[2] Similarly, this should be said for the Karkasha and Guru qualities of the other sense organs (from Chakshusindriya to Sparshanendriya).
[681] [1] Gautama! How many Mauyalahu qualities are there in Shrotrendriya?
[681-1] Gautama! There are Anant (infinite) Mauyalahu qualities in Shrotrendriya.
________________ पन्द्रहवाँ इन्जियपद : प्रथम उद्देशक] [ 151 याए संखेज्जगुणे; पदेसट्टयाए–सम्वत्थोवे चक्खिदिए पदेसट्ठयाए, सोइंदिए पदेसट्टयाए संखेज्जगुणे, घाणिदिए पएसट्टयाए संखेज्जगुणे, जिभिदिए पएसट्टयाए प्रसंखेज्जगुणे, फासिदिए पएसट्ठयाए संखेज्जगुणे; योगाहणपएसट्टयाए-सव्वत्थोवे चविखदिए प्रोगाहणट्टयाए, सोइंदिए प्रोगाहणट्टयाए संखेज्जगुणे, घाणिदिए प्रोगाहणट्टयाए संखेज्जगुणे, जिभिदिए प्रोगाहणट्ठयाए असंखेज्जगुणे, फासिदिए प्रोगाहणट्ठयाए संखेज्जगुणे, फासिदियस्स प्रोगाहणट्टयाएहितो चविखदिए पएसट्टयाए अणंतगुणे, सोइंदिए पएसट्ठयाए संखेज्जगुणे, घाणिदिए पएसटुयाए संखेज्जगुणे, जिभिदिए पएसट्टयाए असंखेज्जगुणे, फासिदिए पएसट्टयाए संखेज्जगुणे / _ [979 प्र.] भगवन् ! इन श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय में से अवगाहना की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा अवगाहना और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? [979 उ.] गौतम ! अवगाहना की अपेक्षा से सबसे कम चक्षुरिन्द्रिय है, (उससे) श्रोत्रेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे) घ्राणेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे)जिह्वन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से असंख्यातगुणी है, (उसकी अपेक्षा) स्पर्शनेन्द्रिय अवगाहना की दृष्टि से संख्यातगुणी है / प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम चक्षुरिन्द्रिय है, (उससे) श्रोत्रेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे) घ्राणेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे) जिह्वन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणी है, (उसकी अपेक्षा) स्पर्शनेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है / अवगाहना और प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम अवगाहना की दृष्टि से 'चक्षुरिन्द्रिय है, (उससे) अवगाहना की अपेक्षा से श्रोत्रेन्द्रिय संख्यातगुणी है, (उससे) नाणेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे) जिह्वन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से असंख्यातगुणी है, (उससे) स्पर्शनेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, स्पर्शनेन्द्रिय की अवगाहनार्थता से चक्षुरिन्द्रिय प्रदेशार्थता से अनन्तगुणी है, (उससे) श्रोत्रेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे) घ्राणेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे) जिहन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगणी है, (उससे) स्पर्शनेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है / 980. [1] सोइंदियस्स णं भंते ! केवतिया कक्खडगरुयगुणा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता कक्खडगरुयगुणा पण्णत्ता / [980-1 प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय के कर्कश और गुरु गुण कितने कहे गए हैं ? [980-1 उ.] गौतम ! (श्रोत्रेन्द्रिय के) अनन्त कर्कश और गुरु गुण कहे गए हैं। [2] एवं जाव फासिदियस्स / [980-2] इसी प्रकार (चक्षुरिन्द्रिय से लेकर) यावत् स्पर्शनेन्द्रिय (तक के कर्कश और गुरु गुण के विषय में कहना चाहिए / ) 681. [1] सोइंदियस्स णं भंते ! केवतिया मउयलहुयगुणा पण्णता ? गोयमा ! अणंता मउयलहुयगणा पण्णत्ता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org