Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
[Eleventh Language Section] [81 Does he take the objects that are his own (tangible, subtle and very subtle) or does he take the objects that are not his own (intangible)? [877-21 A] Gautama! He takes the objects that are his own (tangible), but he does not take the objects that are not his own (intangible). [22] Venerable Sir! Does he take the objects that are his own (tangible) in a sequential manner or does he take them in a non-sequential manner? Gautama! He takes them in a sequential manner, not in a non-sequential manner. [877.22 A] Bhagavan! Does the living being take the objects that are his own (tangible) in a sequential manner or does he take them in a non-sequential manner? [877-22 A] Gautama! (He takes those tangible objects) in a sequential manner, not in a non-sequential manner. [23] Venerable Sir! Does the living being take the objects that he takes in a sequential manner from three directions or does he take them from six directions? [877-23 A] Gautama! (He) takes those objects regularly from six directions. [Sangrahani Gatha Artha-] Tangible, subtle, very subtle, minute and vast, upward, downward, beginning, his own (tangible), his own (tangible), sequential and regularly from six directions (the living being takes the objects that are suitable for language). 878. Venerable Sir! Does the living being take the objects that he takes in the form of language in a discontinuous manner or does he take them continuously? _ Gautama! He takes those objects both discontinuously and continuously. While taking them discontinuously (the living being) takes them with a minimum interval of one time and a maximum interval of countless times; and while taking them continuously, he takes them with a minimum interval of two times and a maximum interval of countless times, every time, without interruption (pause), continuously.
________________ ग्यारहवाँ भाषापद] [81 क्या वह उन स्वविषयक (स्पृष्ट, अवगाढ एवं अनन्तरावगाढ) द्रव्यों को ग्रहण करता है अथवा अविषयक (अस्वगोचर) द्रव्यों को ग्रहण करता है ? [877-21 उ.] गौतम ! वह स्वविषयक (स्वगोचर) द्रव्यों को ग्रहण करता है, किन्तु अविषयक (अस्वगोचर) द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता। [22] जाई भंते ! सविसए गेहति ताई कि प्राणुपुचि गेण्हति ? प्रणाणुपुटिव गेण्हति ? गोयमा ! प्राणुपुचि गेहति, णो प्रणाणुपुत्वि गेण्हति / [877.22 प्र.] भगवन् ! जिन स्वविषयक द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है, क्या वह उन्हें आनुपूर्वी से ग्रहण करता है, अथवा अनानुपूर्वी से ग्रहण करता है ? [877-22 उ.] गौतम ! (वह उन स्वगोचर द्रव्यों को) आनुपूर्वी से ग्रहण करता है, अनानुपूर्वी से ग्रहण नहीं करता। [23] जाई भंते ! प्राणुपुब्धि गेहति ताई कि तिदिसि गेहति जाब छद्दिसि गेण्हति ? गोयमा ! णियमा छद्दिसि गेण्हति / / पुट्ठोगाढ अणंतर अणू य तह बायरे य उडमहे / अादि विसयाऽऽणुपुन्वि णियमा तह छदिसि चेव / / 16 / / [877-23 प्र.] भगवन् ! जिन द्रव्यों को जीव ानुपूर्वी से ग्रहण करता है, क्या उन्हें तीन दिशाओं से ग्रहण करता है, यावत् (अथवा) छह दिशाओं से ग्रहण करता है ? [877-23 उ.] गौतम ! (वह) उन द्रव्यों को नियमतः छह दिशाओं से ग्रहण करता है। [संग्रहणीगाथार्थ-] स्पृष्ट, अवगाढ, अनन्तरावगाढ, अणु तथा बादर, ऊर्ध्व, अधः, आदि, स्वविषयक, स्वविषयक, प्रानुपूर्वी तथा नियम से छह दिशाओं से (भाषायोग्य द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है।) 878. जीवे णं भंते ! जाइं दवाई भासत्ताए गेहति ताई कि संतरं गेहति ? निरंतरं गेण्हति ? ___ गोयमा! संतरं पि गेहति निरंतरं पि गेण्हति / संतरं गिण्हमाणे जहणणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जसमए अंतरं कटु गेण्हति / निरंतरं गिण्हमाणे जहण्णणं दो समए, उक्कोसेणं असंखेज्जसमए अणुसमयं अविरहियं निरंतरं गेण्हति / [878 प्र. भगवन् ! जिन द्रव्यों को जीव भाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या (वह) उन्हें र (बीच-बीच में कुछ समय का व्यवधान डाल कर या बीच-बीच में रुक कर) ग्रहण करता है या निरन्तर (लगातार) ग्रहण करता रहता है ? [878 उ.] गौतम ! वह उन द्रव्यों को सान्तर भी ग्रहण करता है और निरन्तर भी ग्रहण करता है। सान्तर ग्रहण करता हुआ (जीव) जघन्यतः एक समय का तथा उत्कृष्टत: असंख्यात समय का अन्तर करके ग्रहण करता है; और निरन्तर ग्रहण करता हुग्रा जघन्य दो समय तक और उत्कृष्ट असंख्यात समय तक प्रतिसमय, बिना विरह (विराम) के, लगातार ग्रहण करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org