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## Translation:
**[Prajñāpanā Sūtra [466-2]]**
The same understanding should be applied to the categories of Jyotishkas and Vaimānika Devas (celestial beings). The key point is that they are tri-sthāna-patita (hina-adhika) in relation to their position in their own place. This concludes the categorization of the categories of the Jīva.
**Discussion - Vaṇavyantar, Jyotishka and Vaimānika Devas**
The categorization of the categories of Jyotishka and Vaimānika Devas is presented in the previous sūtra (499). The statement of the categories of all three types of Devas is made in an exaggerated manner, following the previous sūtra.
**Ajiva-Paryāya**
**[500 Pra.]** Bhagavan! How many types of Ajiva-Paryāya are there?
**[500 U.]** Gautama! There are two types of Ajiva-Paryāya. They are: (1) Rūvi-Ajiva-Paryāya and (2) Arūvi-Ajiva-Paryāya.
**[501 Pra.]** Bhagavan! How many types of Arūvi-Ajiva-Paryāya are there?
**[501 U.]** Gautama! There are ten types of Arūvi-Ajiva-Paryāya. They are: (1) Dharma-āstikāya, (2) Dharma-āstikāya's Deśa, (3) Dharma-āstikāya's Pradeśa, (4) Adharma-āstikāya, (5) Adharma-āstikāya's Deśa, (6) Adharma-āstikāya's Pradeśa, (7) Ākāśa-āstikāya, (8) Ākāśa-āstikāya's Deśa, (9) Ākāśa-āstikāya's Pradeśa, and (10) Addhā-samaya (time).
**[502 Pra.]** Bhagavan! How many types of Rūvi-Ajiva-Paryāya are there?
**[502 U.]** Gautama! There are four types of Rūvi-Ajiva-Paryāya. They are: (1) Skandha, (2) Skandha-Deśa, (3) Skandha-Pradeśa, and (4) Paramāṇu-pudgala.
**[503 Pra.]** Bhagavan! Are they countable or uncountable?
**[503 U.]** Gautama! They are neither countable nor uncountable.
**[503 Pra.]** Bhagavan! Why are they said to be neither countable nor uncountable?
________________ [ प्रज्ञापनासूत्र [466-2] ज्योतिष्कों और वैमानिक देवों में (पर्यायों की प्ररूपणा भी इसी प्रकार की समझनी चाहिए)। विशेष बात यह है कि वे स्वस्थान में स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित (हीनाधिक) हैं। यह जीव के पर्यायों को प्ररूपणा समाप्त हुई / विवेचन-वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के पर्यायों को प्ररूपणा-प्रस्तुत सूत्र (499) में पूर्वोक्तसूत्रानुसार तोनों प्रकार के देवों के पर्यायों के कथन अतिदेशपूर्वक किया गया है। अजीव-पर्याय अजीवपर्याय के भेद-प्रभेद और पर्यायसंख्या 500. अजीवपज्जवा णं भंते कतिविहा पण्णता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता / तं जहा-रूविग्रजीवपज्जवा य अरूविधजीवपज्जवा य / [500 प्र.] भगवन् ! अजीवपर्याय कितने प्रकार के कहे हैं ? [500 उ.] गौतम ! (अजीवपर्याय) दो प्रकार के कहे हैं; वे इस प्रकार--(१) रूपी अजीव के पर्याय और अरूपी अजीव के पर्याय / 501. अरूविग्रजीवपज्जवा णं भंते ! कतिविहा पण्णता? गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता / तं जहा-धम्मस्थिकाए 1, धम्मस्थिकायस्स देसे 2, धम्मस्थिकायस्स पदेसा 3, अधम्मस्थिकाए 4, अधम्मस्थिकायस्स देसे 5, अधम्मस्थिकायस्स पदेसा 6, प्रागासस्थिकाए 7, आगासस्थिकायस्स देसे 8, प्रागासस्थिकायस्स पदेसा 6, प्रद्धासमए 10 / [501 प्र.] भगवन् ! अरूपी अजीव के पर्याय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [501 उ.] गौतम ! वे दस प्रकार के कहे हैं / यथा-(१) धर्मास्तिकाय, (2) धर्मास्तिकाय का देश, (3) धर्मास्तिकाय के प्रदेश, (4) अधर्मास्तिकाय, (5) अधर्मास्तिकाय का देश, (6) अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, (7) आकाशास्तिकाय, (8) आकाशास्तिकाय का देश, (9) आकाशास्तिकाय के प्रदेश और (10) अद्धासमय (काल) के पर्याय / 502. रूवियजीवपज्जवा णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता? गोयमा ! चउविहा पण्णत्ता / तं जहा-खंधा 1, खंधदेसा 2, खंधपदेसा 3, परमाणुपोग्गले 4 / [502 प्र] भगवन् ! रूपी अजीव के पर्याय कितने प्रकार के कहे हैं ? [502 उ.] गौतम ! वे चार प्रकार के कहे हैं। यथा-(१) स्कन्ध, (2) स्कन्धदेश, (3) स्कन्ध-प्रदेश और (4) परमाणुपुद्गल (के पर्याय)। 503. ते णं भंते ! कि संखेज्जा प्रसंखेज्जा प्रणता? गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, प्रणेता। से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति नो संखेज्जा, नो प्रसंखेज्जा, अणता? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org