________________ 82 [ प्रज्ञापनासूत्र 86. से कि तं खयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया चउन्विहा पण्णत्ता। तं जहा---चम्मपक्खी 1 लोमपक्खी समुन्गपक्खी 3 वियतपक्खी 4 / [८६-प्र.] वे (पूर्वोक्त) खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक किस-किस प्रकार के हैं ? [८६-उ.] खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक चार प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं(१) चर्मपक्षी (जिनकी पांखें चमड़े की हों), (2) लोम (रोम) पक्षी (जिनकी पांखें रोंएदार हों), (3) समुद्गकपक्षी [जिनकी पांखें उड़ते समय भी समुद्गक (डिब्बे या पेटी) जैसी रहें), और (4) विततपक्षी (जिनके पंख फैले हुए रहें, सिकुड़ें नहीं)। 87. से कि तं चम्मपक्खी ? चम्मपक्खी प्रणेगविहा पण्णत्ता। तं जहा–बग्गुली जलोया अडिला भारंडपक्खी जीवंजीवा समुद्दवायसा कण्णत्तिया पक्खिबिराली, जे यावऽण्णे तहप्पगारा / से तं चम्मपक्खो। [८७-प्र.] वे (पूर्वोक्त) चर्मपक्षी खेचर किस प्रकार के हैं ? [८७-उ.] चर्मपक्षी अनेक प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार-वल्गुली (चमगीदड़ = चमचेड़), जलौका, अडिल्ल, भारण्डपक्षी, जीवंजीव (चक्रवाक-चकवे), समुद्रवायस (समुद्री कौए), कर्णत्रिक और पक्षिविडाली / अन्य जो भी इस प्रकार के पक्षी हों, (उन्हें चर्मपक्षी समझना चाहिए।) यह हुई चर्मपक्षियों (की प्ररूपणा / ) 88. से कि तं लोमपक्खी ? लोमपक्खी प्रणेगविहा पन्नत्ता। तं जहा-हंका कंका कुरला वायसा चक्कागा हंसा कलहंसा पायहंसा रायहंसा अडा सेडो बगा बलागा पारिप्पवा कोंचा सारसा मेसरा मसूरा मयूरा सतवच्छा गहरा पोंडरीया कागा कामंजुगा वंजुलगा तित्तिरा वट्टगा लावगा कवोया कविजला पारेवया चिडगा चासा कुक्कुडा सुगा बरहिणा मदणसलागा कोइला सेहा वरेल्लगमादी। से तं लोमपक्खी। [८८-प्र.] वे (पूर्वोक्त) रोमपक्षी किस प्रकार के हैं ? [८८-उ.] रोमपक्षी अनेक प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-ढंक, कंक, कुरल, वायस (कौए), चक्रवाक (चकवा), हंस, कलहंस, राजहंस (लाल चोंच एवं पंख वाले हंस), पादहंस, आड (अड), सेडी, बक (बगुले), बलाका (बकपंक्ति), पारिप्लव, क्रौंच, सारस, मेसर, मसूर, मयूर (मोर), शतवत्स (सप्तहस्त), गहर, पौण्डरीक, काक, कामंजुक (कामेज्जुक), वंजुलक, तित्तिर (तीतर), वर्तक (बतक), लावक, कपोत, कपिजल, पारावत (कबूतर), चिटक, चास, कुक्कुट (मुर्गे), शुक (सुग्गे-तोते), बही (मोर विशेष), मदनशलाका (मैना), कोकिल (कोयल), सेह और वरिल्लक आदि। यह है (उक्त) रोमपक्षियों (का वर्णन / ) 89. से कि तं समुग्गपक्खी ? समुग्गपक्खी एगागारा पण्णता। ते णं गस्थि इहं, बाहिरएसु दीव-समुद्दएसु भवंति / से तं समुग्गपक्खी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org