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Bhagavan! A living being who abstains from killing living beings binds how many types of karmic matter (karmaprakritis)? Gautama! He becomes a sevenfold binder (saptavidhbandhakas) or a onefold binder (ekavidhbandhakas), or an eightfold binder (ashtavidhbandhakas), or a sixfold binder (shadvidhbandhakas), or an unbinder (abandhakas), or a controller (prabandhakas). Similarly, it should be stated regarding the case of a human being (binding karmic matter).
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________________ 512 // [प्रज्ञापनासून [1642 प्र.] भगवन् ! प्राणातिपात से विरत (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? [3.] गौतम ! वह सप्तविध (कर्म) बन्धक होता है, अथवा अष्टविध (कर्म) बन्धक होता है, अथवा षट्विधबन्धक, एकविधबन्धक या प्रबन्धक होता है। इसी, प्रकार मनुष्य के (द्वारा कर्मप्रकृतियों के बन्ध के) विषय में भी कथन करना चाहिए। 1643. पाणाइवायविरया णं भंते ! जीवा कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य 1 / अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्टविहबंधगे य 1 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अविहबंधगा य 2 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधगे य 3 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधगा य 4 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अबंधगे य 5 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अबंधगा य 6 / अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अटुविहबंधगे य छविहबंधगे य 1 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छविहबंधगा य 2 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य छविहबंधगे य 3 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य छविहबंधगा य 4, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य अबंधए य 1 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अढविहबंधगे य अबंधगा य 2 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य प्रबंधगे य 3 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य अबंधगा य 4, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छब्धिहबंधगे य प्रबंधगे य 1 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधगे य अबंधगा य 2 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधगा य अबंधए य 3 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधगा य प्रबंधगा य 4 / अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अटुविहबंधगे य छविहबंधगे य अबंधगे य 1 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छस्विहबंधगे य अबंधगा य 2 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अविहबंधगे य छव्विहबंधगा य अबंधगे य 3 अहया सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छन्विहबंधगा य अबंधगा य 4 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य छविहबंधगे य अबंधगे य 5 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठबिहबंधगा य छविहबंधगे य अबंधगा य 6 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अदविहबंधगा य छविहबंधगा य अबंधगे य 7 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य छविहबंधगा य अबंधगा य 8 एते अट्ठ भंगा / सव्वे वि मिलिया सत्तावीसं भंगा भवंति / [1643 प्र.] भगवन् ! प्राणातिपात से विरत (अनेक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं ? [उ.] गौतम ! (1) समस्त जीव सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003483
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages1524
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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