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[169. In the category of "Alpabahutva" (fewness), those with "Anaakar-upayog" (non-form use) are the fewest, because the duration of "Anaakar-upayog" is short, and they are obtained in small numbers at the time of inquiry. Those with "Saakar-upayog" (form use) are countless times more numerous, because the duration of "Saakar-upayog" is countless times longer than the duration of "Anaakar-upayog". 234. Alternatively, all beings are classified into two types: "Aaharga" (food-consuming) and "Anaaharga" (non-food-consuming). O Venerable One! How long does an "Aaharga" remain as an "Aaharga"? Gautama! "Aaharga" is classified into two types: "Chudmastha-Aaharga" (pseudo-food-consuming) and "Kevali-Aaharga" (fully-food-consuming). / O Venerable One! How long does a "Chudmastha-Aaharga" remain as an "Aaharga"?
________________ सर्वजीवाभिगम] [169 . अल्पबहुत्वद्वार में सबसे थोड़े अनाकार-उपयोग वाले हैं, क्योंकि अनाकार-उपयोग का काल अल्प होने से पृच्छा के समय वे अल्प ही प्राप्त होते हैं। साकार-उपयोग वाले उनसे संख्येयगुण हैं, क्योंकि अनाकार-उपयोग के काल से साकार-उपयोग का काल संख्येयगुण है। 234. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-पाहारगा चेव अणाहारगा चेव / आहारए णं भंते ! जाव केवचिरं होइ ? गोयमा ! प्राहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहाछउमत्थाहारए य केवलिआहारए य / छउमत्थआहारए णं जाव केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं खुड्डागं भवग्गहणं दुसमयऊणं उक्कोसेणं असंखेज्जकालं जाव कालओ० खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जइभागं / केवलिआहारए णं जाय केवचिरं होइ ? गोयमा! जहन्लेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं. देसूणा पुवकोडी। ___अणाहारए णं भंते ! केवचिरं होइ ? गोयमा! अणाहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहाछउमत्थअणाहारए य केवलिअणाहारए य / छउमस्थअणाहारए णं जाव केवचिरं होइ ? गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दो समया। केवलिप्रणाहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सिद्धकेवलिअणाहारए य भवत्थकेवलिप्रणाहारए य। सिद्ध केवलिअणाहारए णं भंते ! कालमो केचिरं होइ ? साइए अपज्जवसिए / भवत्थकेवलिअणाहाराए णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? भवत्थकेवलिअणाहाराए दुविहे पण्णत्ते, सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए य अजोगिभवत्थकेवलिप्रणाहारए य / सजोगिभवत्थकेवलिप्रणाहारए णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ? अजहण्णमणुक्कोसेणं तिणि समया / अजोगीभवत्यकेवली ? जहणणं अंतोमुहत्तं उफ्कोसेणं अंतोमुहुत्त। छउमत्थामाहारगस्स केवइयं कालं अंतरं ? गोयमा! जहण्णणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दो समया। केवलिआहारगस्स अंतरं अजहण्णमणुक्कोसेणं तिण्णि समया / छउमत्यप्रणाहारगस्स अंतरं जहन्नेणं खुड्डागभवग्गहणं दुसमयऊणं उक्कोसेणं असंखेज्जकालं जाव अंगुलस्य असंखेज्जइभागं / सिद्ध केवलिअणाहारगस्स साइयस्स अपज्जवसियस्स पत्थि अंतरं / / सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगस्स जहण्णेणं अंतोमुलुत्तं उक्कोसेण वि। अजोगिभवत्यकेलिअणाहारगस्स पत्थि अंतरं। एएसि णं भंते ! पाहारगाणं अणाहारगाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा० गोयमा ! सम्वत्थोवा अणाहारगा, पाहारगा असंखेज्जगुणा। 234. अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं आहारक और अनाहारक। भगवन् ! आहारक, आहारक के रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! पाहारक दो प्रकार के हैं छद्मस्थ आहारक और केवलि-आहारक / भगवन् ! छद्मस्थ-पाहारक, आहारक के रूप में कितने काल तक रहता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org