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________________ 30 ] [ राजप्रश्नीयसूत्र ३७-उन मणियों में की पीले रंग की मणियों का पोतरंग क्या सचमुच में स्वर्ण चंपा, स्वर्ण चंपा की छाल, स्वर्ण चंपा के अंदर का भाग, हल्दी-हल्दी के अंदर का भाग, हल्दी की गोली, हरताल (खनिज-विशेष), हरताल के अंदर का भाग, हरताल को गोली, चिकुर (गंधद्रव्य-विशेष), चिकुर के रंग से रंगे वस्त्र, शुद्ध स्वर्ण की कसौटी पर खींची गई रेखा, वासुदेव के वस्त्रों, अल्लकी (वृक्ष-विशेष) के फूल, चंपाकुसुम, कूष्मांड (कद्द, -कोला) के फूल, कोरंटक पुष्प की माला, तडवडा (आंवला) के फूल, घोषातिकी पुष्प, सुवर्ण यूथिका-जूही के फूल, सुहिरण्य के फूल, बीजक के फूल, पीले अशोक, पीली कनेर अथवा पीले बंधुजीवक जैसा पीला था ? ३८–णो इण? सम, ते णं हालिद्दा मणी एत्तो इट्टतराए चेव जाव' वणेणं पण्णत्ता। ३८-आयुष्मन् श्रमणो! ये पदार्थ उनकी उपमा के लिये समर्थ नहीं हैं / वे पीली मणियां तो इन से भी इष्टतर यावत् पीले वर्ण वाली थीं। _३६-तत्थं णं जे ते सुक्किल्ला मणी तेसि गं मणोणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते से जहानामए अंकेति वा, संखे ति वा, चंदेति वा, कुमुद-उदक-दयरय-दहि-घणक्खीर-क्खीरपूरे ति वा, कोंचावली ति वा, हारावली ति वा, हंसावली इ वा, बलागावली ति वा, सारतियबलाहए ति वा, धंतधोयरुप्पपट्ट इ वा, सालीपिटरासी ति वा, कुदपुप्फरासी ति वा, कुमदरासी ति वा, सुक्कच्छिवाडी ति वा, पिहुणमिजिया ति वा, भिसे ति वा, मुणालिया ति वा, गयदंते ति वा, लवङ्गदलए ति वा, पोंडरियदलए ति वा, सेयासोगे ति वा, सेयकणवीरे ति वा, सेयबंधुजीवे ति वा, भवे एयारूवे सिया? 39 हे भगवन् ! उन मणियों में जो श्वेत वर्ण की मणियाँ थीं क्या वे अंक रत्न, शंख, चन्द्रमा, कुमुद, शुद्ध जल, ओस बिन्दु, दही, दूध, दूध के फेन, कोंच पक्षी की पक्ति, मोतियों के हार, हंस पंक्ति, बलाका पंक्ति, चन्द्रमा की पंक्ति (जाल के मध्य में प्रतिविम्बित चन्द्रपंक्ति), शरद ऋतु के मेघ, अग्नि में तपाकर धोये गये चांदी के पतरे, चावल के आटे, कुन्दपुष्प-समूह, कुमुद पुष्प के समूह, सूखी सिम्बा फली (सेम की फली), मयूरपिच्छ का सफेद मध्य भाग, विस-मृणाल, मृणालिका, हाथी के दाँत, लोंग के फूल, पुंडरीककमल (श्वेत कमल), श्वेत अशोक, श्वेत कनेर अथवा श्वेत बंधुजीवक जैसी श्वेत वर्ण की थीं ? ४०-णो इण? सम?, ते णं सुक्किला मणी एत्तो इट्टतराए चेव जाव' वन्नेणं पण्णत्ता। ४०-आयुष्मन् श्रमणो! ऐसा नहीं है। वे श्वेत माणियां तो इनसे भी अधिक इष्टतर, यावत् सरस, मनोहर आदि मनोज्ञ श्वेत वर्ण वाली थीं। मरिणयों का गन्ध-वर्णन ४१-तेसि णं मणीणं इमेयारूवे गंधे पण्णत्ते, से जहानामए कोटपुडाण वा, तगरपुडाण वा, एलापुडाण वा, चोयपुडाण वा, चंपापुडाण वा, दमणापुडाण वा, कुकुमपुडाण वा, चंदणपुडाण वा, 1. देखें सूत्र संख्या 32 2. देखें सूत्र संख्या 32 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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