SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मणियों का वर्ण [ 29 (दांतों को नीला रंगने का चूर्ण), वनराजि, बलदेव के पहनने के वस्त्र, मोर की गर्दन, कबूतर की गर्दन, अलसी के फल, बाणपुष्प, अंजनकेशी के फूल, नीलकमल, नीले अशोक, नीले कनेर, और नीले बंधुजीवक जैसी नीली थीं ? / ३४—णो इण? सम?, ते णं णीला मणी एतो इट्टतराए चेव जाव' वण्णेणं पण्णता / ३४—यह अर्थ समर्थ नहीं है-यह ऐसा नहीं है। वे नीली मणियां तो इन उपमेय पदार्थों से भी अधिक इष्टतर यावत् अतीव मनोहर नील वर्ण वाली थीं। ३५--तत्थ णं जे ते लोहियगा मणी तेसि णं मणीण इमेयारवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए ससरुहिरे इ वा, उरभरुहिरे इ वा, वराहरुहिरे इ वा, मणुस्सरुहिरे इ वा, महिसरुहिरे इ वा, बालिदगोवे इ वा, बालदिवाकरे इ वा, संझन्भरागे इबा, गुजद्धरागे इ वा, जासुअणकुसुमे इ वा, किंसुयकुसुमे इ वा, पालियायकुसुमे इ वा, जाइहिंगुलए ति वा, सिलप्पवाले ति बा, पवालअंकुरे इ वा, लोहियक्खमणी इ वा, लक्खारसगे ति वा, किमिरागकंबले ति वा, चीणपिट्ठरासी ति वा, रत्तुप्पले इ वा, रत्तासोगे ति वा, रत्तकणवीरे ति वा, रत्तबंधुजोवे ति वा, भवे एयारूवे सिया? ३५-उन मणियों में की लोहित (लाल) रंग की मणियों का रंग सचमुच में क्या शशक (खरगोश) के खून, भेड़ के रक्त, सुअर के रक्त, मनुष्य के रक्त, भैंस के रक्त, बाल इन्द्रगोप, प्रात:कालीन सूर्य, संध्या राग (संध्या के समय होने वाली लालिमा), गुजाफल (धुघची) के आधे भाग, जपापुष्प, किंशुक पुष्प (केसूडा के फूल), परिजातकुसुम, शुद्ध हिंगलुक (खनिजपदार्थ-विशेष), प्रबाल (मगा) प्रबाल के अंकुर, लोहिताक्ष मणि, लाख के रंग, कृमिराम (अत्यन्त गहरे लाल रंग) से रंगे कंबल, चीणा (धान्य-विशेष) के आटे, लाल कमल, लाल अशोक, लाल कनेर अथवा रक्त बंधुजीवक जैसा लाल था ? ३६-णो इण? सम8, ते णं लोहिया मणी इत्तो इट्टतराए चेव जाव' वणेणं पण्णत्ता। ३६-ये पदार्थ उनकी लालिमा का बोध कराने में समर्थ नहीं हैं। वे मणियां तो इनसे भी अधिक इष्ट यावत अत्यन्त मनोहर रक्त (लाल) वर्ण की थीं। ३७–तस्थ गं जे ते हालिद्दा मणी तेसि गं मणोणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते--से जहाणामए चंपए ति वा, चंपछल्लो ति वा, चंपगभेए इ वा, हलिहा इ वा, हलिहाभेदे ति वा, हलिद्दागुलिया ति वा, हरियालिया वा, हरियालभेदे ति वा, हरियालगुलिया ति वा, चिउरे इ वा, चिउरंगराते ति वा, वरकणगनिधसे इ वा, वरपुरिसवसणे ति वा, अल्लकीकुसुमे ति वा, चंपाकुसुमे इ वा, कुहंडियाकुसुमे इ वा, कोरंटकमल्लदामे ति बा, तडवडाकुसुमे इ वा, घोसेडियाकुसुमे इ बा, सुवण्णजूहियाकुसुमे इ वा, सुहिरण्णकुसुमे ति वा, बीययकुसुमे इ वा, पीयासोगे ति वा, पोयकणवीरे ति वा, पीयबंधुजीवे ति वा, भवे एयारूवे सिया ? 1. देखें सुत्र संख्या 32 2. देखें सूत्र संख्या 32 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy