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________________ 28 ] [ राजप्रश्नीयसूत्र (मुरज का ऊपरी भाग) मृदंग पुष्कर, पूर्ण रूप से भरे हुए सरोवर के ऊपरी भाग, करतल (हथेली), चन्द्रमंडल, सूर्यमंडल, दर्पण मंडल अथवा शंकु जैसे बड़े-बड़े खीलों को ठोक और खींचकर चारों ओर से सम किये गये भेड़, बैल, सुअर, सिंह, व्याघ्र, बकरो और भेड़िये के चमड़े के समान अत्यन्त रमणीय एवं सम था। वह सम भूमिभाग अनेक प्रकार के प्रावर्त, प्रत्यावर्त्त, श्रेणि, प्रश्रेणि, स्वस्तिक, पुष्यमाणव, शराबसंपुट, मत्स्यांड, मकराण्ड जार, मार आदि शुभलक्षणों और कृष्ण, नील, लाल, पीले और श्वेत इन पांच वर्षों की मणियों से उपशोभित था और उनमें कितनी ही मणियों में पुष्पलताओं, कमलपत्रों, समुद्रतरंगों, वसंतलताओं, पद्मलताओं आदि के चित्राम बने हुए थे तथा वे सभी मणियां निर्मल, चमकदार किरणों वाली उद्योत-शीतल प्रकाश वाली थी। मणियों का वर्ण 31 तत्थ णं जे ते किण्हा मणी तेसि णं मणोणं इमे एतारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानाम नए जीमूतए इ वा, खंजणे इ वा, अंजणे इ वा, कज्जले इवा, मसी इबा, मसीलिया इ बा, गवले इ वा, गवलगुलिया इ वा, भमरे इ वा, भमरावलिया इ वा, भमरपतंगसारे ति वा, जंबूफले ति वा, प्रद्दारि? इ वा, परपुढे इ वा, गए इवा, गयकलमे इ वा, किण्हसप्पे इ वा, किण्हकेसरे इ वा, मागासथिग्गले इ वा, किण्हासोए इ वा, किण्हकणवीरे इ वा, किण्हबंधुजीवे इ वा, एयारूवे सिया ? ३१-उन मणियों में की कृष्ण वर्ण वाली मणियां क्या सचमुच में सघन मेघ घटाओं, अंजनसुरमा, खंजन (गाड़ी के पहिये की कीच) काजल, काली स्याही, काली स्याही की गोली, भैंसे के सींग की गोली, भ्रमर, भ्रमर पंक्ति, भ्रमर पंख, जामुन, कच्चे अरीठे के बीज अथवा कौए के बच्चे, कोयल, हाथी, हाथी के बच्चे, कृष्ण सर्प, कृष्ण बकुल शरद ऋतु के मेघरहित आकाश, कृष्ण अशोक वृक्ष, कृष्ण कनेर, कृष्ण बंधुजीवक (दोपहर में फूलने वाला वृक्ष-विशेष) जैसी काली थीं ? ३२–णो इण8 सम8, प्रोवम्म समणाउप्रो ! ते णं किण्हा मणी इत्तो इद्वतराए चेव कंततराए चेव, मणुण्णतराए चेव, मणामतराए चेव वणेणं पण्णत्ता। ३२-हे आयुष्मन् श्रमणो ! यह अर्थ समर्थ नहीं है-ऐसा नहीं है। ये सभी तो उपमायें हैं / वे काली मणियां तो इन सभी उपमाओं से भी अधिक इष्टतर कांततर (कांति-प्रभाववाली) मनोज्ञतर और अतीव मनोहर कृष्ण वर्ण वाली थीं। ३३–तत्थ णं जे ते नीला मणी तेसि णं मणोणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए भिगे इ बा, भिंगपत्ते इ वा, सुए इ वा, सुपिच्छे इ वा, चासे इ वा, चासपिच्छे इ वा, णोली इवा, पीलीभेदे इ वा, णोलीगुलिया इ वा, सामाए इ वा, उच्चन्तगे इ वा, वणराती इ वा, हलधरवसणे इ वा, मोरगीवा इ बा, पारेवयग्गीवा इ वा, अयसिकुसुमे इ वा, बाणकुसुमे इ वा, अंजणकेसियाकुसुमे इ वा, नीलुपले इ वा, नोलासोगे इ वा, णोलकणवीरे इ वा, णीलबंधुजीवे इ वा, भवे एयारूवे सिया? ३३-उनमें की नील वर्ण की मणियाँ क्या भंगकीट, भृग के पंख, शुक (तोता), शुकपंख, चाष पक्षी (चातक), चाष पंख, नील, नील के अंदर का भाग, नील गुटिका, सांवा (धान्य),उच्चन्तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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