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________________ रानी धारिणी यहाँ भोजन करने के बाद शेष रहा भोजन भिखारियों, याचकों में बाँट दिया जाता था। सेवा के लिये बहुत से दास-दासी उसके पास रहते थे। उसकी गोशाला में गायों, भैसों एवं बकरियों की प्रचुरता थी। उसके यंत्रागार, कोश, कोठार और शस्त्रागार पूरी तरह से भरे रहते थे। वह शारीरिक और मानसिक बल से बलवान् था अथवा उसकी सेना बल-विक्रमशाली थी। दुर्बलों का मित्रहितैषी था। प्रजा को पीड़ित करने वाले कांटे रूप चोर और डाकू आदि न होने से उसका राज्य प्रजाकंटकों से रहित था। देश में उपद्रव, दंगाफिसाद करने वालों को दंड देकर शांत कर दिये जाने से मदितकंटक था। गुडों बदमाशों को देश-निकाला दे देने से उद्धृतकंटक था। विरोधियों का विनाश कर देने से अपहृतकंटक था। इसी प्रकार उसका राज्य अपहतशत्रु था, निहतशत्रु था, मथितशत्रु था, उद्धृतशत्रु था, निजितशत्रु था, पराजितशत्रु था एवं दुभिक्ष दुर्गुण दुर्व्यसन, महामारी से रहित था। शत्रुभय से मुक्त था। जिससे वह क्षेम-कुशल, सुभिक्ष युक्त तथा विघ्नों एवं राजकुमार आदि राजपुरुषों द्वारा कृत विडम्बनाओं-राज्यविरुद्ध कार्यों से रहित था। ऐसे राज्य का प्रशासन करते हुए राजा अपना समय बिताता था। विवेचन-राजा सेय का विशेष वृत्तान्त अन्यत्र देखने को नहीं मिलता है। स्थानांगसूत्र के पाठवें ठाणा में श्रमण भगवान् महावीर के पास दीक्षित आठ राजारों में एक नाम 'सेय' भी है किन्तु यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि यह 'सेय' राजप्रश्नीयमूत्र गत राजा है अथवा अन्य कोई / टीकाकार अभयदेवसूरि ने इसी सेय को आठ दीक्षित राजाओं में माना है। सेय के संस्कृत रूपान्तर श्वेत और श्रेय दोनों होते हैं। प्राचार्य मलयगिरिसूरि ने अपनी टीका में 'श्वेत का प्रयोग किया है। रानी धारिणी ४-[तस्स णं सेयरण्णो] धारिणी [नामं] देवी [होत्था सुकुमालपाणिपादा अहोण-पडिपुण्णपंचिदियसरीरा लक्खण-बंजण-गुणोववेया माण-उम्माण-पमाणपडिपुण्णसुजायसन्बंग-सुदरंगी ससिसोमागार-कंतपियदसणा सुरुवा, करयलपरिमियपसस्थतिबलिवलियमझा, कुडंलुल्लिहियगंडलेहा कोमुइरयणियर-विमलपडिपुण्णसोमवयणा सिंगारागारचारुवेसा संगयगय-हसिय-भणिय-चिट्ठियविलास-ललिय-संलावनिउणजुत्तोवयारकुसला सुदर-थण-जघण-वयण-कर-चरण-नयण-लायण्णविलासकलिया सेएण रण्णा सद्धि अणुरत्ता अविरत्ता इ8 सद्द-फरिस-रस-रूव-गधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरइ] (उस सेय राजा को) धारिणी (नाम की) देवी-पटरानी (थी)। (वह सुकुमाल-अतिकोमल हाथ पैर वाली थी। शरीर और पांचों इन्द्रियां अहीन शुभ लक्षणों से संपन्न एवं प्रमाणयुक्त थीं। वह शंख, चक्र आदि शुभ लक्षणों तथा तिल, मसा आदि व्यंजनों और सौभाग्य आदि स्त्रियोचित गुणों से युक्त थी, मान-माप उन्मान-तोल और प्रमाण-नाप से परिपूर्ण-बराबर थी, सभी अंग परिपूर्ण और सुगठित होने से सर्वांग सुन्दरी थी, चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति वाली, कमनीय, प्रियदर्शना और सुरूपवती थी। उसका मध्य भाग---कटि भाग मुट्ठी में प्रा जाये, इतना पतला और प्रशस्त था, त्रिवली से युक्त था और उसमें बल पड़े हुए थे। उसको गंडलेखा-कपोलों पर बनाई हुए पत्रलेखा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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