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________________ [ राजप्रश्नीयसूत्र स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य-युगल और दर्पण--ये पाठ मंगल एवं वज्र रत्न, की डांडी वाले, कमल जैसे सुगंधित, काले, नीले, लाल, पीले और सफेद चामर लटके हुए थे। इस अशोक वृक्ष के नीचे एक चौकोर शिलापट्ट था, जो जामुन, नेत्रगोलक, अंजन वृक्ष, सघन मेघमाला, भ्रमरसमह, काजल, तोल गटिका, भैंसे के सींग आदि से भी अधिक कृष्ण वर्ण का था / दर्पण की तरह इसमें देखने वालों के प्रतिबिम्ब पड़ते थे। पाट की मोटाई में चारों ओर हीरा, पन्ना, मणि, माणक, मोती आदि से चित्र बने हुए थे और उस का स्पर्श रुई, मक्खन, आक की रुई प्रादि से भी अधिक सुकोमल था। इस प्रकार का रत्नमय रम्य शिला पाट उस अशोकवृक्ष के नीचे रखा था। राजा सेय ४-तित्थ णं पामलकप्पाए नयरीए / ] सेमो राया [होत्था, महया-हिमवंत-महंतमलयमंदरमहिंदसारे अच्चंतविसुद्धरायकुलवंसप्पसूए निरंतरं रायलक्खणविराइयंगमंगे बहुजणबहुमाणपूइए सव्वगुणसमिद्ध खत्तिए मुद्धाभिसित्ते माउपिउसुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मस्सिदे जणवयपिया जणवयपाले जणवय-पुरोहिए सेउकरे के उकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्धे पुरिसप्रासोविसे पुरिसवरपोंडरोए पुरिसवरगंधहत्थी अड्डे दित्ते वित्ते त्रिस्थित विपुल भवण-सयण-पासण-जाण-वाहणाइण्णे बहुधणबहुजायरूव-रजए प्रारोग-पप्रोगसंपउत्ते विच्छड्डिययउर भत्तपाणे बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूए पडिपुग्नजत-कोस-कोट्ठागारपाउहधरे बलवं दुबलपच्चामित्ते, प्रोहयकंटयं मलियकंटयं उद्धियकंटयं अप्पडिकंटयं ओहयसत्तु मलियसत्तु उद्धियसत्तु निज्जयसत्तु पराइयसत्तु ववगयमिक्खदोसमारि-भयविष्पमुक्कं खेमं सिवं सुभिक्खं पसंतडिबडमरं रज्जं पसासेमाणे विहरई।] उस आमलकप्पा नगरी में सेय नामक राजा राज्य करता था / वह मनुष्यों में महा हिमवंत पर्वत, महामलय पर्वत, मंदर (मेरु) पर्वत और महेन्द्र नामक पर्वत आदि के समान श्रेष्ठ-प्रधान था। अत्यन्त विशुद्ध राजकुल एवं वंश में उत्पन्न हुआ था। उसके समस्त अंगोपांग राजचिह्नों और लक्षणों से सुशोभित थे। अनेक लोगों द्वारा वह बहुमान-संमान और सत्कार प्राप्त करता था अथवा अनेक लोगों द्वारा सम्मानपूर्वक पूजा जाता था। शौर्य आदि सर्वगुणों से समृद्ध था / क्षत्रिय था / मूर्धा· भिषिक्त राजा था। माता-पिता के सुसंस्कारों से सम्पन्न था। स्वभाव से दयालु था / कुलमर्यादा का करने वाला और पालक था। क्षेम-कुशल का कर्ता और रक्षक होने से मनुष्यों में इन्द्र के समान, जनपद का पिता, जनपद-देश का पालक, जनपद का पुरोहित-मार्गदर्शक, अद्भुत कार्यों को करने वाला और मनुष्यों में श्रेष्ठ था। पुरुषार्थों का साधक होने से पुरुषों में प्रधान, निर्भय एवं बलिष्ठ होने से पुरुषों में सिंह, शूरवीर होने से पुरुषों में ज्याघ्र, सफल कोप वाला होने से पुरुषों में प्राशीविष सर्प, दयालु, कोमल हृदय होने से पुरुषों में कमल, शत्रुओं का नाश करने से पुरुषों में उत्तम गंधहस्ती के समान था। समृद्ध, प्रभावशाली अथवा अभिमानियों का मानमर्दक, विख्यात-प्रख्यात था। विस्तीर्ण और विपुल भवन, शैया, प्रासन, यान, वाहन का स्वामी था। उसके कोष और कोठार सदा धन, स्वर्ण, चाँदी, धान्य से भरे रहते थे। अर्थोपार्जन के उपायों का जानकार था। उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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