SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अवस्थिति खिवाड़ा-नमक की पहाड़ी अथवा शाहपुर झेलम-गुजरात में थी। दूसरे की अवस्थिति श्रावस्ती के उत्तरपूर्व में नेपाल को तराई में थी / सम्भवतः यही केकय साढ़े पच्चीस देशों में अभिहित है। उसकी राजधानी श्वेताम्बिका थी। यह श्रावस्ती और कपिलवस्तु के मध्य में नेपालगंज के पास में होनी चाहिए। इस देश के आधे भाग को आर्य देश स्वीकार किया है और प्राधे भाग को अनार्य देश। प्राधे भाग में प्रादिमवासी जाति निवास करती होगी। बौद्ध साहित्य में सेविया [श्वेताम्बिका] को 'सेतव्या' लिखा है। भगवान् महावीर का भी वहाँ पर विचरण हुआ था। यह स्थान श्रावस्ती [सहेट-महेट] से 17 मील और बलरामपुर से 6 मील की दूरी पर अवस्थित था। इसके उत्तरपूर्व में 'मगवन' नामक उद्यान था। इस नगरी का अधिपति राजा प्रदेशी था / दीघनिकाय में राजा का नाम 'पायासि' दिया गया है। वह राजा अत्यन्त अधार्मिक, प्रचण्ड क्रोधी और महान् तार्किक था / गुरुजनों का सन्मान करना उसने सीखा ही नहीं था और न वह श्रमणों और ब्राह्मणों पर निष्ठा ही रखता था। उसकी पत्नी का नाम 'सूर्यकान्ता' था और पुत्र का नाम 'सूर्यकान्त' था, जो राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोश, कोष्ठागार और अन्तःपुर की पूर्ण निगरानी रखता था। राजा प्रदेशो के चित्त नामक एक सारथी था। दीघनिकाय में चित्त के स्थान पर 'खत्त' शब्द का प्रयोग हुआ है। 'खत्ते' का पर्यायवाची संस्कृत में क्षत-क्षता है, जिसका अर्थ सारथी है। वह सारथी साम, दाम, दण्ड, भेद, प्रभृति नीतियों में बहुत ही कुशल था। प्रबल प्रतिभा का धनी होने के कारण समय-समय पर राजा प्रदेशी उससे परामर्श किया करता था। कुणाला जनपद में श्रावस्ती नगरी का अधिपति 'जितशत्रु' था। जितशत्रु के सम्बन्ध में हम पूर्व में लिख चुके हैं-वह राजा प्रदेशी का प्राज्ञाकारी सामन्त था। राजा प्रदेशी के आदेश को स्वीकार कर चित्त सारथी उपहार लेकर श्रावस्ती पहँचता है और वहाँ रहकर शासन की देखभाल भी करता है। केशी श्रमण : एक चर्चा उस समय चतुर्दशपूर्वधारी पाश्र्वापत्य केशी कुमारश्रमण वहाँ पधारते हैं / ऐतिहासिक विज्ञों का अभिमत है कि सम्राट् प्रदेशीप्रति बोधक केशी कुमारश्रमण भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के चतुर्थ पट्टधर थे। प्रथम पट्टधर प्राचार्य शुभदत्त थे, जो प्रथम गणधर थे। उनकी जन्मस्थली 'क्षेमपुरी' थी। उन्होंने 'सम्भूत' मुनि के पास श्रावकधर्म ग्रहण किया था। माता-पिता के परलोकवासी होने पर उन्हें संसार से विरक्ति हुई। भगवान् पार्श्वनाथ के प्रथम उपदेश को सुनकर दीक्षा ली और पहले गणधर बने / उनके उत्तराधिकारी प्राचार्य हरिदत्तसूरि हुए, जिन्होंने वेदान्त दर्शन के प्रसिद्ध आचार्य 'लोहिय' को शास्त्रार्थ में पराजित कर प्रतिबोध दिया और लोहिय को 500 शिष्यों के साथ दीक्षित किया। उन नवदीक्षित श्रमणों ने सौराष्ट्र, तैलंग, प्रभति प्रान्तों में विचरण कर जैन शासन की प्रबल प्रभावना की। ततीय पट्टधर प्राचार्य 'समुद्रमरि' थे। उन्हीं के समय 'विदेशी' नामक महान प्रभावशाली प्राचार्य ने उज्जयिनी नगरी के अधिपति महाराज 'जयसेन', महारानी 'अनंगसुन्दरी' और राजकुमार केशी' को दीक्षित किया। 100 आगमसाहित्य में केशीश्रमण का राजप्रश्नीय और उत्तराध्ययन, इन दो आगमों में उल्लेख हना। राजप्रश्नीय और उत्तराध्ययन में उल्लिखित केशी एक ही व्यक्ति रहे हैं या पृथक-पृथक ? प्रज्ञाचक्ष पं. सुखलाल 100. केशिनामा तद्विनेयः यः प्रदेशीनरेश्वरम् / प्रबोध्य नास्तिकाद् धर्माद् जैनधर्मेऽध्यरोपयत् / / -~-नाभिनन्दोद्धार प्रबंध-१३६ [29] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy