SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जी संघवी१०१, डा. जगदीशचन्द्र जैन 02, डा० मोहनलाल मेहता 103, पं. मुनि नथमल जी१०४ [युवाचार्य महाप्रज्ञ] आदि अनेक विज्ञों ने राजा प्रदेशी के प्रतिबोधक केशी कुमारश्रमण को और गणधर गौतम के साथ संवाद करने वाले केशी कुमारश्रमण को एक माना है, पर हमारी दृष्टि से दोनों पृथक-पृथक व्यक्ति हैं। क्योंकि सम्राट् प्रदेशी को प्रतिबोध देने वाले चतुर्दशपूर्वी और चार ज्ञान के धारक थे।१०५ गणधर गौतम के साथ चर्चा करने वाले केशीकुमार तीन ज्ञान के धारक थे। 06 यदि हम यह मान लें कि जिस समय केशीकुमार ने गणधर गौतम के साथ चर्चा की थी, उस समय वे तीन ज्ञान के धारक थे और बाद में चार ज्ञान के धारक हो गये होंगे / पर यह तर्क भी उचित नहीं है, क्योंकि यदि वे चार ज्ञान के धारक वाद में बने तो श्रावस्ती में चित्त सारथी को चातुर्याम का उपदेश किस प्रकार देते ? उनके नाम के साथ 'पार्वापत्यीय' विशेषण किस प्रकार लगता? इसलिए स्पष्ट है कि दोनों पृथक-पृथक व्यक्ति हैं। किन्तू नामसाम्य होने से अनेक मनीषियों को भ्रम हो गया है और उन्होंने दोनों को एक माना है। विविध, उत्सव केशीकुमार के प्रागमन के समाचारों ने जन-जन के अन्तर्मानस में एक अपूर्व उल्लास का संचार किया। वे नदी के प्रवाह की तरह धर्मदेशना श्रवण करने के लिए प्रस्थित हुए। उनके तीव्र कोलाहल को सुनकर चित्त सारथी सोचने लगा-क्या प्राज इस नगर में कोई इन्द्र, स्कन्द, रुद्र, मुकुन्द, शिव, वैश्रमण, नाग, यक्ष, भूत, स्तूप, चैत्य, वृक्ष, गिरि, गुफा, कप, नदी, सागर, और सरोवर का उत्सव मनाया जा रहा है ? जिससे सभी लोग उत्साह के साथ जा रहे हैं / यहाँ पर जिन इन्द्र, स्कन्द आदि के उत्सवों का वर्णन है, उसका उल्लेख ज्ञाताधर्म कथा१०७ व्याख्याप्रज्ञप्ति 08 भगवती१०६ निशीथ 1* आदि अन्य आगमों में भी आया है। इन्द्र वैदिक साहित्य का बहुत ही लब्धप्रतिष्ठ देव रहा है। वह समस्त देवों में अग्रणी था। प्राचीन युग में 'इन्द्रमह' उत्सव सभी -- --... 101. 'दर्शन और चिन्तन' -भ० पार्श्वनाथ का विरासत लेख, पृ. 5 102. जैन साहित्य का बहद् इतिहास-भाग-२, पृष्ठ-५४-५५. 103. जैन साहित्य का वहद इतिहास--भाग-२, पृष्ठ-५४-५५. डा० मोहनलाल मेहता 104. उत्तरज्झयणाणि-भाग-१, पृष्ठ-२०१ 105. 'पासावच्चिज्जे केसीणाम कुमारसमणे जाइसंपण्णे"....."च उद्दसपुव्वी चउणाणोवगए पंचहि अणगारसएहिं सद्धि संपरिडे / ' --रायपसेणइय, पृष्ठ-२८३. पं. बेचरदास जी संपादित 106. 'तस्स लोगपईवस्स पासि सीसे महायसे / केशी कुमारसमणे विज्जाचरणपारगे / प्रोहिनाणसुए बुद्ध, सीससंघसमाउले / गामाणुगाम रीयन्ते, सावत्थि नगरिमागए॥ --उत्तराध्ययन-२३३२-३ 107. ज्ञातावमकथा 8, पृष्ठ-१०० / 108. व्याख्याप्रज्ञप्ति-३.१ / 109. भगवती-३.१ / 110. निशीथसूत्र-८.१४ / [30] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy