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________________ 130] [ राजप्रश्नीयसूत्र प्रकृति से प्रचण्ड-क्रोधी, रौद्र भयानक और क्षुद्र-अधम था। वह साहसिक (बिना विचारे प्रवृत्ति करनेवाला) था। उत्कंचन धूर्त, बदमाशों और ठगों को प्रोत्साहन देने वाला, उकसाने वाला था। लांच-रिश्वत लेनेवाला, वंचक-दूसरों को ठगने वाला, धोखा देने वाला, मायावी, कपटी-बकवृत्ति वाला, कूट-कपट करने में चतुर और अनेक प्रकार के झगड़ा-फिसाद रचकर दूसरों को दुःख देने वाला था। निश्शील--शील रहित था। निर्व-हिंसादि पापों से विरत न होने से व्रतरहित था, क्षमा आदि गुणों का अभाव होने से निर्गुण था, परस्त्रीवर्जन आदि रूप मर्यादा से रहित होने से निर्मर्याद था, कभी भी उसके मन में प्रत्याख्यान, पौषध, उपवास आदि करने का विचार नहीं आता था। अनेक द्विपद-मनुष्यादि, चतुष्पद, मृग, पशु, पक्षी, सरीसृप-सर्प आदि की हत्या करने, उन्हें मारने, प्राणरहित करने, विनाश करने से साक्षात् अधर्म की ध्वजा जैसा था, अथवा अधर्म रूपी केतुग्रह था / गुरुजनोंमाता पिता आदि को देखकर भी उनका आदर करने के लिए आसन से खड़ा नहीं होता था, उनका विनय नहीं करता था और जनपद को प्रजाजनों से राजकर लेकर भी उनका सम्यक् प्रकार सेयथार्थ रूप में पालन और रक्षण नहीं करता था। विवेचन–'केकय-अर्ध'-शास्त्रों में साढ़े पच्चीस (25 // ) आर्य देशों और उन देशों की एक-एक राजधानी के नामों का उल्लेख है / पच्चीस देश तो पूर्ण रूप से आर्य थे किन्तु केकय देश का आधा भाग आर्य था। बौद्ध ग्रंथों में भी केकय देश का उल्लेख है। उस देश का वर्तमान स्थान उत्तर में पेशावर (पाकिस्तान) के आसपास होना चाहिये, ऐसा इतिहासवेत्ताओं का मंतव्य है। परन्तु अभी भी उसके नाम और भौगोलिक स्थिति का निश्चित निर्णय नहीं हो सका है। मूल पाठ में 'अद्धे' शब्द है, जिसकी टीकाकार ने 'केकया नाम अर्धम्' लिखकर मूल शब्द की व्याख्या की है। राजा दशरथ की एक रानी का नाम "कैकयी" था। जो इस केकय देश को थी, जिससे उसका नाम कैकयी पड़ा हो, यह संभव है। ___ 'सेयविया' केकय देश की राजधानी के रूप में इस नगरी का उल्लेख सूत्रों में किया गया है / आवश्यक सूत्र में बताया है कि श्रमण भगवान महावीर छद्मस्थ-अवस्था में विहार करते हुए उत्तर वाचाल प्रदेश में गये और वहाँ से “से यविया" गये। इस नगरी के श्रमणोपासक राजा प्रदेशी ने भगवान् की महिमा की और उसके पश्चात् भगवान् वहाँ से सुरभिपुर पधारे / परन्तु वर्तमान में यहनगरी कहाँ है, एतद् विषयक कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है। __ दीघनिकाय (बौद्ध ग्रन्थ) के 'पायासि सुत्तंत' में इस नगरी का नाम 'सेतव्या' बताया है और कौशल देश में विहार करते हुए कुमार कश्यप इस नगरी में पाये थे, यह सूचित करके इसे कोसल देश का नगर बताया है-'येन सेतव्या नाम कोसलानं नगरं तद् अवसरि' (दीघ-निकाय भाग 2) / जैन दृष्टि से कोशल देश अयोध्या और उसके आस-पास का प्रदेश माना गया है / सेयविया का किसी किसी ने "श्वेतविका" यह भी संस्कृत रूपान्तर किया है। 'पएसी'--सूत्र में उल्लिखित इस शब्द का टीकाकार प्राचार्य ने 'प्रदेशी' संस्कृत भाषान्तर किया है और आवश्यक सूत्रों में "पदेशी" शब्द का प्रयोग किया है। इस राजा सम्बन्धी जो वर्णन इस "रायपसेणइय" सूत्र में आगे किया जाने वाला है, उससे मिलता-जुलता वर्णन दीघनिकाय के 'पायासि सुत्तत' में भी किया गया है। इसमें मुख्य प्रश्नकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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