________________ चित्त सारथी] [ 131 राजा पयासी है और उसका वंश राजन्य एवं सम्बन्ध कोशल वंश के राजा 'पसेनदि' के साथ बताया है / 'रायपसेणइय' सूत्र में जिस प्रकार से राजा पयेसी को अत्यन्त पापिष्ठ के रूप में वर्णित किया है, वैसा तो दीर्घनिकाय में नहीं कहा है, किन्तु वहाँ इतना उल्लेख अवश्य है कि इस राजा के विचार पापमय थे और यह मानता था कि परलोक नहीं, औपपातिक सत्ता नहीं है और सुकृत-दुष्कृत का किसी प्रकार का फल-विपाक नहीं है (दीघनिकाय भाग 2) / इस राजा के विषय में और कोई ऐतिहासिक जानकारी नहीं मिलती है / रानी सूर्यकान्ता और युवराज सूर्यकान्त---- २०८-तस्स णं पएसिस्स रनो सूरियकंता नाम देवी होत्या, सुकुमालपाणिपाया धारिणी वग्णनो' / पएसिणा रन्ना सद्धि अणुरत्ता अविरत्ता इ8 सद्दे फरिसे रसे रुवे जाव (गंधे पंचविहे माणुस्सए काममोगे पच्चणुभवमाणा) विहरइ / तस्स णं पएसिस्स रण्णो जेट्ठ पुत्ते सूरियकताए देवीए अत्तए सूरियकते नाम कुमारे होत्था, सुकुमालपाणिपाए जाव पडिरूवे / से णं सूरियकते कुमारे जुवराया वि होत्था, पएसिस्स रनो रज्जं च रट्टच बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च पुरं च अंतेउरं च सयमेव पच्चुवेक्खमाणे पच्चुवेक्खमाणे विहरइ। २०८—उस प्रदेशी राजा की सूर्यकान्ता नाम की रानी थी, जो सुकुमाल हाथ पैर आदि अंगोपांग वाली थी, इत्यादि धारिणी रानी के समान इसका वर्णन करना चाहिए / वह प्रदेशी राजा के प्रति अनुरक्त–अतीव स्नेहशील थी, उससे कभी विरक्त नहीं होती थी और इष्ट-प्रिय शब्द, स्पर्श, रस, (यावत् गन्धमूलक) अनेक प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों को भोगती हुई रहती थी। उस प्रदेशी राजा का ज्येष्ठ पुत्र और सूर्यकान्ता रानी का प्रात्मज सूर्यकान्तनामक राजकुमार था। वह सुकोमल हाथ पैर वाला, अतीव मनोहर था। वह सूर्यकान्त कुमार युवराज भी था। वह प्रदेशी राजा के राज्य (शासन), राष्ट्र (देश), बल (सेना), वाहन (रथ, हाथी, अश्व आदि) कोश, कोठार (अन्न-भण्डार) पुर और अंतःपुर की स्वयं देख भाल किया करता था। चित्त सारथी---- २०६-तस्स णं परसिस्स रनो जे? भाउयवयंसए चित्ते णाम सारही होत्था, अड्डे जावर बहुजणस्स अपरिभूए, साम-दंड-भेय-उपप्पयाण-प्रत्थसत्थ-ईहा-मइविसारए, उप्पत्तियाए-वेतियाएकम्मयाए-पारिणामियाए चउम्विहाए बुद्धोए उववेए, पएसिस्स रण्णो बहुसु कन्जेसु य कारणेसु य कुडुबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य प्रापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढो, पमाणं, पाहारे, प्रालंबणं, चक्खू, मेढिभूए, पमाणभूए, प्राहारभूए, चक्खुभूए, सव्वट्ठाणसव्वभूमियासु लद्धपच्चए विदिण्णविचारे रज्जधुराचितए प्रावि होत्था। 1. धारिणी रानी के वर्णन के लिये देखिये सूत्र संख्या 5 2. देखें सूत्र संख्या 4 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org