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________________ 74] [ राजप्रश्नोयसूत्र (इलायची) समुद्गक, हरतालसमुद्गक, हिंगलुकसमुद्गक, मैनमिलसमुद्गक, अंजनसमुद्गक रखे हैं। ये सभी समुद्गक रत्नों से बने हुए, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं / द्वारस्थ ध्वजारों का वर्णन - १३३-सूरिया णं विमाणे एगमेगे दारे अनुसयं चक्कझयाणं, अट्ठसयं मिगझयाणं, गरुडझयाणं, छत्तज्झयाणं, पिच्छन्झयाणं, सउणिज्झयाणं, सौहझयाणं, उसभज्झयाणं, प्रसयं सेयाणं चउविसाणाणं नागवरकेऊणं / एवमेव सपुत्वावरेणं सूरियाभे विमाणे एगमेगे दारे असीयं असीयं केउसहस्सं भवति इति मक्खायं / 133 -सूर्याभ विमान के प्रत्येक द्वार के ऊपर चक्र, मृग, गरुड़, छत्र, मयूरपिच्छ, पक्षी, सिंह. वषभ. चार दांत वाले श्वेत हाथी और उत्तम नाग (सर्प) के चित्र (चिह्न) से अंकित एक सौ, आठ-एक सौ आठ ध्वजायें फहरा रही हैं। इस तरह सब मिलाकर एक हजार अस्सी-एकहजार अस्सी ध्वजायें उस सूर्याभ विमान के प्रत्येक द्वार पर फहरा रही हैं—ऐसा तीर्थकर भगवन्तों ने कहा है। द्वारवर्ती भौमों (विशिष्ट स्थानों) का वर्णन १३४–तेसि गंदाराणं एगमेगे दारे पट्टि पट्टि भोमा पन्नत्ता। तेसि णं भोमाणं भूमिभागा, उल्लोया च भागियया / तेसि गं भोमाणं च बहुमज्झदेसभागे पत्तेयं पत्तेयं सोहासणे, सीहासणवन्नो सपरिवारो, अवसेसेसु भोमेसु पत्तेयं-पत्तेयं भद्दासणा पन्नत्ता। १३४–उन द्वारों के एक-एक द्वार पर पैसठ-पैंसठ भौम (विशिष्ट स्थान-उपरिगृह) बताये हैं / यान विमान की तरह ही इन भौमों के समरमणीय भूमि भाग और उल्लोक (चन्देवों) का वर्णन करना चाहिए। इन भौमों के बीचों-बीच एक-एक सिंहासन रखा है। यानविमानवर्ती सिंहासन की तरह उसका सपरिवार वर्णन समझना चाहिए, अर्थात् उसके परिवार रूप सामानिक आदि देवों के भद्रासनों सहित इन सिंहासनों का वर्ण-जानना चाहिये / शेष आसपास के भौमों में भद्रासन रक्खे हैं / १३५--तेसि णं वाराणं उत्तमागारा' सोलसविहेहि रयणेहि उवसोभिया, तं जहा–रयणेहि जाव रि?हिं / तेसि णं दाराणं उपि अट्ठमंगलगा सज्झया जाव छत्तातिछत्ता। एवमेव सपुत्वावरेणं सूरियाने विमाणे चत्तारि वारसहस्सा भवंतीति मक्खायं / १३५–उन द्वारों के ओतरंग (ऊपरी भाग) सोलह प्रकार के रत्नों से उपशोभित हैं / उन रत्नों के नाम इस प्रकार हैं--कर्केतनरत्न यावत् (वज्र, वैडूर्य, लोहिताक्ष, मसारगल्ल, हंसगर्भ, पुलक सौगन्धिक, ज्योतिरस, अंक, अंजन, रजत, अंजनपुलक, जातरूप, स्फटिक), रिष्ट रत्न / 1. पाठान्तर—उवरिमागारा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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