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________________ तोरणवर्णन ] उन तोरणों के आगे दो-दो मनोगुलिकायें हैं। इन मनोहर मनोगुलिकानों पर अनेक सोने और चांदी के पाटिये जड़े हुए हैं और उन सोने और चांदी के पाटियों पर वज्ररत्नमय नागदन्त लगे हैं एवं उन नागदन्तों के ऊपर वज्ररत्नमय छींके टंगे हैं। उन छींकों पर काले, नीले, लाल, पीले और सफेद सूत के जालीदार वस्त्र खण्ड से ढंके हुए वातकरक (जल से रहित, कोरे घड़े) रखे हैं। ये सभी वातकरक वज्ररत्नमय, स्वच्छ यावत् अतिशय सुन्दर हैं। उन तोरणों के आगे चित्रामों से युक्त दो-दो (रत्नकरंडक-रत्नों के पिटारे) रखे हैं। जिस तरह चातुरंत चक्रवर्ती (षट खंडाधिपति) राजा का वैडर्यमणि से बना हया एवं स्फटिक मणि के पट आच्छादित अद्भुत-आश्चर्य-जनक रत्नकरंडक अपनी प्रभा से उस प्रदेश को पूरी तरह से प्रकाशित, उद्योतित, तापित और प्रभासित करता है, उसी प्रकार ये रत्नकरंडक भी अपनी प्रभा–कांति से अपने निकटवर्ती प्रदेश को सर्वात्मना प्रकाशित, उद्योतित तापित और प्रभासित करते हैं / उन तोरणों के प्रागे दो-दो अश्वकंठ (कंठ पर्यन्त घोड़े की मुखाकृति जैसे रत्न-विशेष) गजकंठ, नरकंठ किन्नरकंठ, किंपुरुषकंठ, महोरगकंठ, गंधर्वकंठ, और वृषभकंठ रखे हैं / ये सब अश्वकंठादिक सर्वथा रत्नमय, स्वच्छ-निर्मल यावत् असाधारण सुन्दर हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो पुष्प-चंगेरिकायें (फूलों से भरी छोटी-छोटी टोकरियां-डलिया) माल्यचंगेरिकायें, चूर्ण (सुगन्धित चूर्ण) चंगेरिकायें गन्ध चंगेरिकायें, वस्त्र चंगेरिकायें, आभरण (आभूषण) चंगेरिकायें, सिद्धार्थ (सरसों) को चंगेरिकायें एवं लोमहस्त (मयूरपिच्छ) चंगेरिकायें रखी हैं / ये सभी रत्नों से बनी हुई, निर्मल यावत् प्रतिरूप-अतीव मनोहर हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो पुष्पपटलक (पिटारे) यावत् (माल्य, चूर्ण, गन्ध, वस्त्र, आभरण, सिद्धार्थ,) तथा मयूर पिच्छपटलक रखे हैं। ये सब भी पटलक रत्नमय, स्वच्छ-निर्मल यावत् प्रतिरूप हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो सिंहासन हैं / इन सिंहासनों का वर्णन मुक्तादामपर्यन्त पूर्ववत् कहना चाहिये। उन तोरणों के आगे रजतमय दो-दो छत्र हैं। इन रजतमय छत्रों के दण्ड विमल वैडूर्यमणियों के हैं, कणिकायें (बीच का केन्द्र) सोने को हैं, संधियाँ वज्र की हैं, मोती पिरोई हुई आठ हजार सोने की सलाइयां (ता.) हैं तथा दद्दर चन्दन और सभी ऋतुओं के पुष्पों की सुरभि से युक्त शीतल कान्ति वाले हैं / इन पर मंगलरूप स्वस्तिक आदि के चित्र बने हैं। इनका आकार चन्द्रमण्डलवत् गोल है। उन तोरणों के आगे दो-दो चामर हैं। इन चामरों की डंडियां चन्द्रकांत वैडूर्य और वज्र रत्नों की हैं और उनपर अनेक प्रकार के मणि-रत्नों द्वारा विविध चित्र-विचित्र रचनायें बनी हैं, शंख, अंकरत्न, कुदपुष्प, जलकण और मथित क्षीरोदधि के फेनज सदश श्वेत-धवल इनके पतले लम्बे बाल हैं / ये सभी चामर सर्वथा रत्नमय. निर्मल यावत् प्रतिरूप-अनुपम शोभा शाली हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो तेलसमुद्गक (सुगन्धित तेल से भरे पात्र), कोष्ठ (सुगन्धित द्रव्यविशेष कुटज) समुद्गक, पत्र (तमाल के पत्ते) समुद्गक, चोयसमुद्गक, तगरसमुद्गक, एला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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